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(8)
तेरस आई रे, मंगल शंख बजाया। नवयुग लाई रे, ज्योतिर्दीप जलाया।।
तेरस आई रे...
1. तम से निकला अमल उजाला, वह अंधेरी ओरी।
समता की कैंची से काढी, मैं ममता की डोरी। सृष्टि विधाता का नूतन गौरव पाया।।
तेरस आई रे... 2. बता रहा है, वह वट का तरु बोधि वृक्ष की गाथा।
जिसकी स्मृति से श्रद्धा-सिंचित, झुक जाता है माथा। भिक्षु स्वामी की कैसी अद्भुत माया ।।
तेरस आई रे... 3. सिरियारी की तपोभूमि यह, यही अरावली घाटी।
सरिता का जल, तरु का पल्लव, पंथ-पंथ की माटी। साक्षी बनकर के देते शीतल छाया।।
तेरस आई रे... 4. कच्ची-पक्की हाट बनी है, धृति की अजब कहानी।
वही नई है इस दुनिया में, जो है बहुत पुरानी। नए पुराने का वृक्ष न कभी उगाया।।
तेरस आई रे... 5. पद्मासन का जयाचार्य ने, अतिशय मूल्य बढ़ाया।
'महाप्रज्ञ' गुरुवर तुलसी ने, उसको शिखर चढ़ाया। भैक्षव शासन की योग सिद्ध है काया।।
तेरस आई रे...
लय : कुंथु जिनवर रे...
संदर्भ : भिक्षु चरमोत्सव लाडनूं, भाद्रव शुक्ला 13, वि.सं. 2053
231200चैत्य पुरुष जग जाए
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