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आओ स्वामीजी ! गुरु- गीता को फिर से दोहराओ रे ! आओ स्वामीजी ! अब पूरा मंगलपाठ सुनाओ रे । आओ स्वामीजी !
1. 'हेत - परस्पर राखीज्यो' यह गुरु गीता की शिक्षा रे, संघ-शक्ति का महामंत्र दीक्षा की दीक्षा रे !
आओ स्वामीजी !
2. प्रश्न एक है आज अनुत्तर श्रावक क्यों है न्यारा रे ! क्यूं न प्रवाहित जीवन में गंगा की धारा रे ! आओ स्वामीजी ! 3. 'श्रावक और श्राविका सारा हेत परस्पर राखीज्यो, संघ संगठन रा मीठा-मीठा फल चाखीज्यो !'
आओ स्वामीजी !
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4. पूरा पाठ बने, अब ऐसा फिर से गण-नन्दन की कली कली को
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मंत्र सिखाओ रे, पुनः सझाओ रे !
आओ स्वामीजी !
5. देव! तुम्हारी वाणी में है तप का तेज निराला रे, देव! तुम्हारा चिन्तन सचमुच इमरत प्याला रे ! आओ स्वामीजी ! 6. गुरु तुलसी ने अनुशासन का भारी मूल्य बढ़ाया रे, सफल बना, जिसने अनुशासन शीश चढ़ाया रे !
आओ स्वामीजी !
7. 'महाप्रज्ञ' अब अनुशासन का अनुपम कवच बनाओ रे, मर्यादा का मोच्छव तारानगर मनाओ रे !
आओ स्वामीजी !
लय: होली आई रे !
संदर्भ : मर्यादा महोत्सव तारानगर, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2056
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चैत्य पुरुष जग जाए
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