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________________ 26 (21) आओ स्वामीजी ! गुरु- गीता को फिर से दोहराओ रे ! आओ स्वामीजी ! अब पूरा मंगलपाठ सुनाओ रे । आओ स्वामीजी ! 1. 'हेत - परस्पर राखीज्यो' यह गुरु गीता की शिक्षा रे, संघ-शक्ति का महामंत्र दीक्षा की दीक्षा रे ! आओ स्वामीजी ! 2. प्रश्न एक है आज अनुत्तर श्रावक क्यों है न्यारा रे ! क्यूं न प्रवाहित जीवन में गंगा की धारा रे ! आओ स्वामीजी ! 3. 'श्रावक और श्राविका सारा हेत परस्पर राखीज्यो, संघ संगठन रा मीठा-मीठा फल चाखीज्यो !' आओ स्वामीजी ! • 4. पूरा पाठ बने, अब ऐसा फिर से गण-नन्दन की कली कली को - Jain Education International मंत्र सिखाओ रे, पुनः सझाओ रे ! आओ स्वामीजी ! 5. देव! तुम्हारी वाणी में है तप का तेज निराला रे, देव! तुम्हारा चिन्तन सचमुच इमरत प्याला रे ! आओ स्वामीजी ! 6. गुरु तुलसी ने अनुशासन का भारी मूल्य बढ़ाया रे, सफल बना, जिसने अनुशासन शीश चढ़ाया रे ! आओ स्वामीजी ! 7. 'महाप्रज्ञ' अब अनुशासन का अनुपम कवच बनाओ रे, मर्यादा का मोच्छव तारानगर मनाओ रे ! आओ स्वामीजी ! लय: होली आई रे ! संदर्भ : मर्यादा महोत्सव तारानगर, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2056 For Private & Personal Use Only चैत्य पुरुष जग जाए www.jainelibrary.org
SR No.003114
Book TitleChaitya Purush Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherSarvottam Sahitya Samsthan Udaipur
Publication Year2003
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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