Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . अन्त्यलघु जैसे-(s).मगण सर्वगुरु जैसे-(ऽऽऽ).और नगण सर्वलघु जैसे-(ii). तथा गुरु जैसे-(s). एवं लघु जैसे--(). जानना चाहिये । ध्यान रहे कि प्रत्येक गण तीन तीन स्वर वों से बनता है ॥ ५ ॥ छन्दविचार. अनुष्टुप. पञ्चमं लघु सर्वत्र, गुरु षष्ठमनुष्टुभि । पादयो राद्ययो दीर्घ,-मन्ययोलघु सप्तमम् ॥६॥ (अन्वयः) अनुष्टुभि सर्वत्र पञ्चमं लघु षष्ठं गुरु, श्राद्ययोः पादयोः सप्तमं दीर्वम् अन्ययोलघु ॥ (टीका) अनुष्टुपछन्दसि चतुर्पु पादेषु प्रतिपादं पञ्चममसरं लघु षष्ठं च गुरु तथा श्लोकपूर्वदिपरााद्ययो:-प्रथमततीययोः पादयोः सप्तमं गुरु अवशिष्टयोदितीयचतुर्थयोः पादयोः सप्तमं लघु भवतीति शेष इत्यर्थः ॥ ___ (प्रति०) सर्वत्र सर्वपादेषु । अनुष्टुभि अनुष्टुप छन्दसि । आद्ययो: प्रथमतृतीययोः । अन्ययो:-द्वितीयचतुर्थयोः ॥ (भाषा) अनुष्टुप्छन्द के चारों चरणों का पांचवाँ अक्षर लघु और छठा गुरु, तथा पहले और तीसरे चरण का सातवाँ गुरु एवं दूसरे और चौथे चरण का सातवाँ लघु होता है ॥ ६ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63