Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३६) ( भाषा) जिसके प्रत्येक चरण में पहले के चार और दसवाँ ग्यारहवाँ तेरहवाँ चौदहवाँ एवम् अन्त के दो अक्षर गुरु हों और पहले चार तब छः तथा अन्त में सात अक्षरों से विश्राम हो उस को मन्दाक्रान्ता छन्द कहते हैं । इस का प्रत्येक चरण मग भगण नगण तगण तगण और एक गुरु से बनता है अत एव स्वर चिह्न - (sssssss) इस प्रकार जानना चाहिये ॥ ३८ ॥ हंसी मन्दाऽऽक्रान्ता ऽऽद्ययतियुगला, पादे पादे विलसति यदा । छन्दोविद्भिः कविभिरुदिता, सेयं हंसी म-भ-न-गयुता ॥ ३९ ॥ (अन्वयः) यदा पादे पादे आद्ययतियुगला मन्दाऽऽकान्ता विलसति, म-अ-न- गता सा इयं छन्दोविद्भिः कविभिः हंसी उदिता ॥ (टीका) मन्दाऽऽकान्तायां प्रतिचरणं यतित्रयं तत्र यदा पादे पादे मद्यं यतिद्र्यं यस्यां तथाभूताऽर्थान्प्रतिपादमन्त्यभागतः सप्तभि: सहभिरक्षर रहिता मन्दाऽऽकारता विलसति विराजते ( अत्र तदेत्यस्य शेषः ) मगरण - भगण-नगण-गुरुभिरुपलक्षिता (उपनिबद्धा) छन्दः शास्त्रज्ञेः कविभि हँसी प्रोक्ता । अत्र प्रतिचरणम् ( SSSS | 5 ) इति स्वरवर्णन्यासः ॥ For Private And Personal Use Only 3

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