Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
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(भाषा) जिस के प्रत्येक चरण का केवल अन्तिम मक्षर गुरु हो और पाठवें तथा अन्तिम अक्षर पर विश्राम हो उसको मणिगुणनिकर छन्द कहते हैं । इस के प्रतिचरण में चार नगण दो लघु तथा एक गुरु रहने के कारण स्वरचिह- (1. mis) इस प्रकार हैं || ४४ ॥
कुमलदाती या प्रतिपादं शर-रसयामा,
काव्यरसज्ञेषु विहितपामा। पण्डितमुख्यरिह कथिता सा,
कुड्मलदन्ती भ-त-न-ग-गाऽऽसा४५|| (अन्वयः)या प्रतिपादं शर-रसयामाभ-त-न-ग-गाला, काव्यरसज्ञेषु विहितपामा सा पण्डितमुख्यैः इह कुड्मलदन्ती कथिता।
(टीका) या पादम्पादम्प्रति शरेषु= पञ्चसु रसेषु= षट्सु (च) यामः = यतियस्यां तथाभूता, एवम् भगण-तगण-नगणगुरुद्वयोपेता , काव्यरसज्ञेषु विहिता= कृता पामाखजः (प्रवण-पठन-निर्माणाधभिलाषबाहुल्येन ) यया एवंभूता मा प. ण्डितप्रधानः इह-छन्दःशास्त्रे कुड्मलदन्तीकथिता प्रोक्ता । अत्र प्रतिपादम्-(Suss|liss) इत्येवं स्वरवर्णन्यासः ॥ . (प्रति०) व्याख्याताः प्रतिशब्दाः ।।
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