Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीधैरन्यविरचित्तवेषा, मत्ता सैषा म-भ-स-ग-युक्ता ॥ ४३ ॥ (अन्वयः) यदि चेत् अन्त्याभ्यां प्राक् चत्वारः नियमितरूपाः लघवः स्युः, अन्यैः दीर्घः विरचितवषाम-भ-स-गयुक्ता साएषा 'मत्ता' ॥ (टीका) स्फुटोऽर्थः । अत्र प्रतिवरणम्-(Ssssss) इति स्वरन्यासः॥ (पति०) नियमितरूपा:= निर्धारितस्वरूपाः । म. त्याभ्याम् पादान्त्यवर्णाभ्याम् । भन्यैः अवशिष्टैः । विरचितषा- निबद्धस्वरूपा । म-भ-स-गयुक्तामगण-भगण-सगण-गुरुवर्णविन्यस्ता ॥ - (भाषा) जिस के प्रत्येक चरण के मन्तिम दो अक्षरों से पहले के चार २ अक्षर लघु और प की सभी प्रक्षर गुरु हों उस को मत्ता छन्द कहते हैं । इस का प्रत्येक चरण मगण भगण साण और एक गुरु से युक्त रहता है अत एव स्वरचिह्न(Ssssss) इस प्रकार जानना चाहिये ॥ ४३ ॥ _. मणिगुणनिकर प्रतिचरणचरमविनिहितगुरुको-, वसुःतुरग-विरतिमनुसरप्ति तथा । (१) विरचितो= निर्मितो वेषः- स्वरूपं यस्याः सा । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63