Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shrik बन्द कहते हैं । इस के पहले और तीसरे चरण के स्वरचिह्न( Isis/ss) इस प्रकार, तथा दूसरे और चौथे चरण के ( ||5||SISIS5) इस प्रकार हैं !! ५३ ॥ द्रुतमक्ष्या चेद् भ-भ-भैः सह ग-क्ष्य युक्तो, प्रथम-तृतीयपदी नियमात् स्तः । ना-ज-ज-यै रचिताववशिष्टी, भुवि विदिता तदसौ द्रुतमध्या ॥५४॥ (अन्वयः) चत् प्रथमततीयपदो नियमात म.म. मह ग-द्वययुक्तो, अवशिष्टौ नात ज-ज-यै रचितौ रतः तत शासौ भुवि द्रुतमच्या विदिता ॥ (टोका) यदि चेत् प्रथम-तृतीय चरणौ भगण-भगण भगणगुरुद्वग-युक्तौ, अवशिषौ- द्वितीय-चतुर्थचरणो नगणात परतो ये जगण-जगण-यगणास्ते रचित निर्मिती स्तः भवतः तत तदा असौ-सा मुवि भूतले द्रुतमध्या विदिता- ख्याता । अत्र प्रथमततीयचरणयो:-( ISHSS ) इति, द्वित्तीय-चतुर्थ चरणयोश्च-- (Insususs) इति स्वरवर्णन्यासोऽवगन्तव्यः । (प्रति०) प्रतिशब्दा व्याख्याताः ॥ (भाषा) यदि तीन भगण और दो गुरु अक्षरों से पहला लया सीसरा चरण , एवं एक नगण दो जगण तथा एक यगय . For Private And Personal Use Only

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