Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
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से
दूसरा और चौथा चरण बनता हो तो उसे दुतमभ्या छन्द
कहते हैं । अत एव इसके पहले और तीसरे चरगा के स्वरचिह्न
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( | ) इस प्रकार और दूसरे तथा चौथे चरण के ( ||||||SS) इस प्रकार हैं । ५४ ॥
समाप्तिश्लोक
वर्षे सिन्धु-वसु-ग्रहेन्दु-तुलिते पक्षे सिते पञ्चमी-, तिथ्यामग्रपणे जिनेन्द्रचरणाम्भोजद्रयं ध्यायता । लालान्तेन जवाहिरेण मुनिनाऽऽचार्येया तत्वार्थिनां, प्रोत्यै स्थानकवासिना विरचितोऽसौ व्रतबोधो मया ॥ ॥ इति वृत्तबोधः समाप्तः ॥
( अन्वयः) सिन्धु- वसु-प्रहेन्दु-तुलिते बर्षे, अश्रयणे
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सिते पक्ष पञ्चमीतियां जिनेन्द्रचरणाग्भोनद्वयं ध्यायता स्थानकवासिना सुधिया लालान्तेन जवाहिरेण श्राचार्येण मया तार्थिनी वृत्तबोधः विरचितः ॥
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(टीका) सिन्धवः चत्वार, बमव: अष्टौ ग्रहाः नव, इन्दुः एकः, तत्तलिते== तन्मिते मर्यादङ्कानां वामतो गत्या १६८४ एतत्परिमिते वर्ष अभय अग्रयण-मासे लितेशुक्रे पक्ष पञ्चमीतिभ्यां जिनेन्द्र-चरण-कमलद्वयं ध्यायता स्थानकवासिना (साधुमार्गणा ) मुनिना लालान्तेन जवाहिरेय
(१) संज्ञात्त्रानवत्त्वम् ।
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