Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
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(५०)
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काव्याम्भोजावनिमनुचलितं, पद्माऽऽश्वर्यं भ्रमरविलसितम् ॥ ५० ॥
(अन्वयः) पादे पादे म-म-न-ल-ग-चिंतं तुर्यैरश्वैः कृतयतिललितं काव्याम्भोजावनम् अनु चलितम् आश्चर्य 'भ्रमरविलसितं पश्य |
(टीका) पादे पादे = प्रतिचरां मग भगवा-नगा-लघुगुरुभिश्चितं = व्याप्तम्, तुर्यैः = चतुर्यैः श्वैः = सप्तमैश्च वर्णै: कृता या पतिस्तया ललितम् = सुन्दरम, काव्याम्भोजाव निम् = काव्यरूपकमलस्थानम् अनु - लक्ष्यीकृत्य चलितम् ग्रस्थितम् अतएव आश्चर्यम् आश्चर्यकारि भ्रमर विलसितम् एतजानकं वृत्तं भ्रमरविलासं च पश्य अवलोकय । अत्र प्रतिचरणम् ( SSSS||||||5) इति स्वरवर्णन्यास: /
( प्रति०) प्रतिशब्दा व्याख्याताः ।
( भाषा) जिस के प्रत्येक चरण में मगण भगण नगण एक लघु तथा एक गुरु हो तथा चौथे और अन्तिम अक्षर पर विश्राम हो उस को भ्रमर विलसित छन्द कहते हैं । इस के एक एक चरण के स्वरचिह्न - (SSSS IIIIIIS) इस प्रकार हैं ||५० ॥
क (माला)
वसु-हय-पतिरतिशयितमृदुपदा, प्रतिचरणकचर मकलितगुफ्ता ।
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