Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
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(भाषा) जिस के प्रत्येक चरण में चार रंगण हों तथा अन्तिम वर्ण पर ही विश्राम हो उसे स्रग्विणी बन्द कहते हैं। इस के स्वर चिह्न-(sISSISSISSIS) इस प्रकार हैं ॥४८॥
- प्रहरणालता गुरु-पर-तुरगोपरि-कृतविरमा,
न-न-मन-सुगंणलघुगुरु-घरमा। प्रहरणकलिताऽकलि कृतिमुखरै-,
रसिकरसकलोचितजयललिता ।४६। (प्रन्ययः) गुरु-पर-तुरगोपरिकृतविरमा न-न-म-न-सुगगलवुगुरुचरमा रसिक-रस-कलोचित-जयललिता कृतिमुखरैः प्रहरणकलिता अकलि ॥
(टीका) गुरु:= गुरुवर्गः पर:= भन्स्यो येषां त दशा ये तुरगा:- सप्त सप्त वर्णास्तदुपरि तेषां तेषामन्तेऽर्थात्सप्तमे सप्तमे वर्ण कृतो विरम:- विश्रामो यया ला नगण-गण-भगणनगण-रूपसुन्दग्गणः सह (सहाथे तृतीया) लघुवर्णो गुरुवर्णश्च क्रमेण चरमः= अन्त्यो यस्याः सा, रसिकानां सकलाया उ. चितो यो जयः- जयशब्दस्तेन ललिता काव्यमार्मिक नै दुःतेति यावत्, कृतिमुखी- पण्डितप्रवरैः पहरणकलिता'
(१) 'पृथग्विनानानाभि' रित्यादिवत् ' सहेनाप्रधान ' इति न्यासेनैवसिद्ध युरूग्रहण सशब्दप्रयोगाऽभावेऽपि तदर्थसत्तामात्रेऽपि तृतीयेति बोधनार्थमत एक पद्वों यूनेतिनिदेशः साच्छते । स्पष्ट वेदं सयुक्त ' इति सूत्रे शब्देन्दु थेपरे॥
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