Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri (टोका) नयने याति प्राप्नोतीति नयनय:- विशालनेत्र सुन्दरः पुरुष इति यावत, नयनयस्य कामः = अभिलाषो यस्याः सा नयनयकामा तथारसे रसे-प्रतिरसं ( शृङ्गारादिरूपे) याम: प्रहरो यस्याः सा (एकैकरसं- चुम्बनादिरूपं प्रति प्रहरसमययापिनी) किञ्च- प्रतियतः वस्त्रादिना संवृतो यो देशस्तरिमन्न. दक्षःस्थले गुरुदयसहिता= विशालस्तनद्वयोपेता एवं मृदुत्तमःप्रतिकोमलो वर्ण: सपलावण्यं यस्याः सा श्रुतिपथे== श्रवणनागें चित्रा= पाश्चर्यकारिणी कुसुमैः= पुपविचित्र:= यथास्थानवि. न्यस्तष्पतया रसिकजनमनोहारिणो अत एव नाम्नाऽपिर. मविचित्रा' सुफविभिरुक्तति ॥ (पति) व्याख्याताः प्रतिशब्दाः ।। (भाषा) नगण यगण नगम तथा याय से युक्त रहने के कारण जिस के प्रत्येक चरण के छोरे २ अक्षर पर विश्राम हो और पांचवा तथा छठा एवं ग्यारहवा तथा बारहवा अक्षर गुरु हों उस की कविलोग कुसुमविचित्रा छन्द कहते हैं । इस के स्वचिह्न- (Assnss) इस प्रकार हैं ॥ ४७॥ ग्विणी मध्यम मध्यमं चेल्लघुत्वं व्रजेत, सर्वपादेषु सर्वत्र वर्णत्रिके। अन्त्यवर्णविरत्या सदारै-रसा, स्रग्विणीमचिरेतांसदा कोविदा॥४८॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63