Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५१) स्त्रगिह कविहृदयकमलविरचिता, सुखयति जगतितुकमपि सुकृतिनम्।५१॥ (अन्वयः) वसु-हय-पतिः अतिशयित-मृदु-पदा प्रतिचरणक-चरम-कलित-गुरुता कवि हृदय-कमलविरचिता सक तु इह जगति कम् अपि सुकृतिनं सुखयति ।। (टीका) पूर्व वसुषु- भष्टस्वष्टसु ( तदनन्तरं ) हयेषुसप्तसु सप्तसु वीवर्थात् प्रतिपादं पूर्वमष्टमे तत: सप्तमे वर्ण च यतिर्यस्यां सा तथाभूता, अतिशयितानिः अतिशयं प्राप्तानि मुनि-- कोमलानि पदानि यस्याः सा, प्रतिचरणकम् प्रतियरणं प्रत्येकचरणस्येति यावत चरमे- अन्ते कलिता- धता गुरुता यया सा, कवीना हृदयान्येव कमलानि तेविरचिता-मिर्मिता सक-माला (एतनामक वृत्तं मालाविशेषश्च)तु इह जगति कमपिदिव्यगुणशालिनं सुकृतिनं= चन्यं जनं सुखयति= आनन्दयसोत्यर्थः । अत्र प्रतिचरणम्-( s)इति स्वरसंस्थानम् ॥ (प्रति०) व्याख्याताः प्रतिशब्दाः, स्पष्टाश्च शिष्टाः ॥ (भाषा) जिस के प्रत्येक चरण के छठे और अन्तिम अक्षर पर विश्राम हो तथा चरण का अन्तिम २ अक्षर गुरु हो उस को स्त्रक् ( माला) छन्द कहते हैं। इस का प्रत्येक चरण चार नगण दो लघु एवं एक गुरु से बनता है अत एव स्वरचित- (Immmmms ) इस प्रकार हैं ॥ ५१॥ For Private And Personal Use Only

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