Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४०) पणबन्ध चत्वारो यदि लघवो वणाः, . प्रत्यध्रि स्युरिह हि मध्यस्थाः। पाणैरातविरति तकृत, निर्णीतं खलु पणबन्धाऽऽख्यम्॥४२॥ (अन्धयः) इह हि यदि प्रत्यति मध्यस्थाः चत्वारः वर्णाः लघवः स्युः, आणैः श्रामविरति तत् वृत्तं खलु पूणबन्धाऽऽख्यं निर्णीतम् ।। (टीका) इह-छन्दःशास्त्रे हि यदि प्रतिचरणं दशसु दशस्वक्षरेषु मध्यस्थाश्चत्वार चत्वारो वर्णा लवयो भवेयुः तत= तदा बाग:- पञ्चभिः- पञ्चभिः- प्राप्ता वितिः= विरामो येन तथाभूतं वृत्तं खलु= नियमेन पणबन्धाऽऽख्यं निर्णीतम् ॥ पत्र प्रतिपादम्-(555555) इति स्वराः ॥ _(प्रति०) पणषन्धाऽऽख्य= ' पणबन्ध ' नामकम् । व्याख्यातानीतराणि ॥ (भाषा) यदि प्रत्येक चरण के मध्य के चार चार अक्षर लघु हों और पांचवें पांचवें अक्षर पर विश्राम हो तो उसे पणबन्ध छन्द कहते हैं । इस के प्रति चरण के स्वर चिह्न(SS5Isss) इस प्रकार हैं !॥ ४२ ॥ मत्ता चत्वारश्चेन्नियमितरूपाः, प्राग त्याभ्यां यदि लघवः स्युः। For Private And Personal Use Only

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