Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri (अन्वयः) यदि सकला: चरणा: क्रमेणा ज-स-ज-सैः त्रिकचतुष्टयं श्रयन्ति अथ से सैः कृतयतिः कविजनालिनां मता जलोहतगतिः ।। (टीका) यदि सर्वे चरणा: क्रमेण --- क्रमशः एकैकश इति यावत् (प्रतिपादगित्यर्थात ) जगण-सगण जगण-समणैर्हेतुभिस्त्रयाणां (स्वर।गां) सङ्घास्त्रिकाणि तेषां चतुष्टयं गणचतुष्टयगित्यर्थः श्रयन्ति प्राप्नुवन्ति तदा रसः रसैः षडभि. षड्भिः कृता= विहिता यति:- विश्रामो यस्यां सा तथाभूता कविजना अलन्तिः- भूषयन्ति ये तन्डीला: विजनालिनस्तेषां सत्कवीनामिति यावत मता- सत्कविभिमन्येित्यर्थ: जलोद्धतगतिः एतन्नामक उन्दो भवतीति शेषः । अत्र प्रतिचरणम् (Is||sis|| 5) इति स्वरन्यासो बोध्य: ॥ (प्रति०) अथ= डा । व्याख्याता अन्ये ॥... (भाषा) जिस के प्रत्येक चरण में जगण समण जगणा मगण हों और छटे छट अक्षर पर विश्राम हो उसे जलोद्धतगति नागक छन्द कहते हैं, अत एव इस के एक एक चरण में(ISIS:s!|Is) इस प्रकार स्वरवर्ण समझना चाहिये ॥२६॥ द्रुतविलम्बित गुरु चतुर्थमुवति सप्तम, दशम-मन्तिमकं च यदाऽक्षरम् । (१) स्वार्थिकः कः। Maunam For Private And Personal Use Only

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