Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निश्चित नियतम् । दिग्भिः = दशभिः । अर्थनीय:अभिलषणीयः । अन्य व्याख्यातम् ॥ (भाषा) जिसके प्रत्येक चरण में आदि के तीन और पाठवा तथा दसवा एवम् चरण के अन्तिम दो अक्षर गुरु हों, तथा तीसो और अन्तिम अक्षर पर विश्राम हो, मगण-नगण-जगण गण और एक गुरु से युक्त वह छन्द महर्षिणी नामक है। इस के प्रत्येक चरण में ( 555||sis!ऽऽ ) इतने स्वरवर्ण चिह्न होते हैं ॥ ३२ ॥ वसन्ततिलका आधे द्विकं गुरु तथा परतश्चतुर्थ, . यत्राष्टमंचदशमान्तिममन्त्ययुग्मम् । पादा भवन्ति त-भ-जै ज-ग-गैः कवीनां, रम्या वसन्ततिलका तिलकायतेसा।३३। (अन्वयः) यत्र याद्यं द्विकं तथा परत: चतुर्थम् अष्टमं दशमान्तिमम अन्त्ययुग्मं च गुरु. त-भ-जैः ज-ग-गैः पादा भवन्ति सा रम्या वसन्ततिलका कवीनां तिलकायते ॥ . (टीका) यस्यां प्रतिपादमाद्यद्यं तथा तदुत्तरं चतुर्थमष्टममेकादशमन्त्यद्वयं चाक्षरं गुरु भवति, अतएव तगण-भगण-जगणजगण-गुरुद्वयः पादा भवन्ति सा रमणीया वसन्ततिलका कवीनां तिलकमिव प्रतिभाति । अत्र प्रतिवरणम्-(SSISISil. Si55) इति स्वरवर्णन्यास:॥ For Private And Personal Use Only

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