Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
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तदा कवि-कुल-शिरोरत्नैः= महामान्यैः प्राचीनविद्वद्भिहरिणी प्रोक्ता । अत्र प्रतिचरणम् (||||sssss/SISIS) इत्यस्ति कमो न्यासस्य ॥ (प्रति०) पूर्व प्राद्याः । त्रयोदश-तत्परौ त्रयोदशचतुर्दशौ ।दशमान्त्योपान्त्यो एकादश-धोडशौ । लोकःसप्तभिः । तुः= चतुर्थैः । रसैः षड्भिः । प्रत्नैः- प्राचीनैः । स्मृता सम्मता (प्रोक्ता) समानमन्यत् ॥
(भाषा) जिस के प्रत्येक चरण के आदि के पांच, और ग्यारहवा तेरहवा चौदहवा तथा सोलहवा अक्षर लघु हो अत एव नमण सगण मगा रमण सगमा एक लघु और एक गुरु से चरमा की पूर्ति होती हो, तथा छठे दसवें और अन्तिम अक्षर पर विश्राम होता-हो उस को कविलोग हरिणी छन्द कहते हैं। इस के प्रत्येक चरण के स्वर चिह्न- ( Sssssss) इस प्रकार हैं ॥ ३५ ॥
হিজাব लघुः पूर्वो यस्यामनुपतति षष्ठाच परत,स्तथा, पञ्चोपान्त्यास्त्रय इति च वर्णाः प्रतिपदम् ।
यतिः षड्भी रुद्रैः कविजन समाराधितधियां, . महामान्या गान्तैथ-म-न-स-भ-लैःसा शिखरिणी॥
(अन्वयः) यस्यां प्रतिपदम् पूर्वः लघुः अनुपतति, षष्ठात्परतः पञ्च उपान्त्यालय इति वर्णाश्च तथा, षड्भिः रुद्रेः यति,
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