Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri (२२) भुजङ्गाय गत्या पदन्यासहेतो, भुजङ्गप्रयातं सुधीभिस्तदुक्तम् ॥२५॥ (अन्वयः) चतुर्भिर्यकार: उपन्यस्तपादे यस्मिन् षष्ठषष्ठाक्षरेषु यतिः एति तत् भुजङ्गस्य गत्य पदन्यासहेतोः सुधीभिः भुजङ्गप्रयातम् उक्तम् ।। (टीका) चतुर्भिश्चतुभियगणरुपन्यस्ताः-- निर्मिताः पादा यस्य तथाभूते यस्मिन् प्रतिपाद पटपटाक्षरेषु षष्ठे वक्षरेषु यतिः-विश्रान्तिः एति--आगच्छति तद गुजङ्गस्य सर्पस्य गत्या - चालेन पदानां शब्दाना न्यासाद्धताविति भुजङ्गप्रयात मुक्तम् पत्र प्रतिपादं - (155755ISSESS ) इत्येवं स्वरवर्णाक्रमः || (प्रति०) यकार:-याणैः । स्पष्ट मतरत् ॥ (भाषा) जिस के प्रत्येक नागा में चार चार यगण हों और छठे छठे अक्षर पर विश्राम ही उसकी भुजङ्गप्रयात छन्द कहते हैं। इसके एक एक चरण के स्वचिह्न ---- (ISS/SSISsss) इस प्रकार हैं ॥ २५ ॥ जलोद्धतगति यदि त्रिकचतुष्टयं ज-स-ज-सैः, क्रमेण चरणाः श्रयन्ति सकलाः। मता कविजनालिनामथ रसै-, ... रसैः कृतयतिजलोद्धलगतिः ॥ २६॥ For Private And Personal Use Only

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