Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (२४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न-भ-भ-रै: प्रतिपादमुदाहृतं, द्रुतविलम्बितवृत्तमदस्तदा ॥ २७ ॥ (अन्वयः ) यदा चतुर्थ सप्तमं दशमम् अन्तिमकं च अक्षरं गुरु उदञ्चति, तदा प्रतिपादं न-म-भ-रै: लदाहृतम् पदः द्रुतविलम्बितवृत्तम् ॥ 1 (टीका) स्पष्टोऽर्थः । अत्र प्रतिपादम् - ( ||||||S(S) इत्ययं स्वरवर्णक्रमो द्रष्टव्यः ॥ (प्रति०) उदञ्चति= समापतति (सम्भवति ) । अन्तिमकम् = अन्तिमम् । न-म-म-ः नगय- भगय- भग-रगणैः । उदाहृतम् = निर्दिष्टम् | अ:- एतत् ॥ 2 (१) एवमिहापि । ( भाषा) नगय भगण भगा और रंग से प्रत्येक चरण बनने के कारण जिस के एक एक चरण में चौथा सातवाँ दशवाँ तथा बारहवाँ अक्षर गुरुही उस को द्रुतविलम्बित छन्द कहते हैं, अत एव इस के प्रत्येक चरण में - ( |||5||5||sis) ऐसे स्वरचिह्न माने गये हैं ॥ २७ ॥ हरिणीलुता प्रथमं प्रथमे च तृतीयेके, न यदि चेम्वरणेऽक्षरमाहितम् । वो ब्रुवते हरिणीप्लुतां, द्रुतविलम्बितमेव तदाहताम् ॥ २८॥ For Private And Personal Use Only

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