Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shi (२१) प्रमिताक्षरां सजससै रुचिरा, - निगदन्ति काव्य-कमल भ्रमराः ॥२४॥ (अन्वयः) यदि चेत् पुन: इहैव पञ्चमं गुरु रससङ्ख्यक लघु भवेत, तदा काव्यकमलममराः सजससै: रुचिरां प्रमिताक्षरां निगदन्ति ॥ (टीका) यदि चेत् पुनरिहैव तोटके सर्वपादेषु पञ्चममक्षरं गुरु षष्ठं लघु भवेत् तदा सगण-जगण-सगण सगणैः शोभनां काव्यकमल-भमरायमासा: पण्डिताः प्रमिताक्षरां कथ. यन्ति । अत्र पादे पादे-- ( 555) इत्येवं द्वादश स्वरवर्णा बोध्याः॥ (प्रति०) रससङ्ख्यक षठम् । रुचिरां- शोभनाम् । निगदन्ति: कथयन्ति । स्फुटमन्यत् । (भाषा)जिस के एक एक चरण में सगण जगण सगण 'सगण होने के कारण पांचवा अझर गुरु तथा छठा लघु हो और शेष अक्षरों का न्यास तोटक के समान हो उसे प्रमिताक्षरा छन्द कहते हैं । इस के प्रति चरण का स्वरन्यासक्रम-(ISISIISIS ) इस प्रकार है ॥ २४ ॥ भुजङ्गप्रयात चतुर्भिर्यकाररुपन्यस्तपादे, यतिः षष्टषष्ठाक्षरेष्वेति यस्मिन् । For Private And Personal Use Only

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