Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एव इस के प्रत्येक चरण में (ISISssiss) इस प्रकार स्वरन्यास होता है ॥१८॥ उपजाति. यत्रेन्द्रवज्राऽऽद्य-तृतीययोः स्या, ___ दुपेन्द्रवज्रायुगतुर्ययोश्च। छन्दोविदः कोविदकामूर्या, ब्रुवन्ति विज्ञा उपजातिमेनाम्॥१६॥ (अन्वयः) यत्र श्राद्यतृतीययोः इन्द्रवज्रा, युगतुर्ययोश्च उपेन्द्रवज्रा स्यात्. कोविद कञ्जसूर्याश्छन्दोविदो विज्ञा एनाम् उपजाति ब्रुवन्ति । (टीका) यस्यां प्रथम-तृतीययोः पादयोरिन्द्रवज्रायाः तथा द्वितीयचतुर्थयोंस्तयोरुपेन्द्रवज्राया लक्षणं स्यात, छन्द:शास्त्रवेत्तारः पण्डितकुलकमलभास्करा विद्वांसस्तामुपजाति कथयन्ति ॥ (प्रति०) विज्ञाः विद्वांसः । एनां ताम् । व्यारख्यातानीतराणि । (भाषा) जिस के पहले तथा तीसरे चरण में इन्द्रवज्रा के, और दूसरे तथा चौथे चरण में उपेन्द्रवज्रा के सभी लक्षण १ यद्यपि युग्मं तु युगलं युगनिति कोषे युगशब्दस्य द्वित्वसंख्यावाचकत्वमस्ति, तथापि छन्दःशास्त्रेऽत्रास्यापि तुर्यादिशब्दवत्पूरणान्तार्थबोधकत्व सर्वजनीनम् । For Private And Personal Use Only

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