Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हों उस को उपजाति कहते हैं। इस का स्वरविचार स्वयं समझलेना चाहिये ॥१६॥ आख्यानिकी. आख्यानिकी कैश्चिदुदाहृताऽसौ, यदीन्द्रवजाचरणेन पूर्वः। उपेन्द्रवज्राचरणैस्त्रयोऽन्ये, भवन्ति पादाः क्रमभेद्भद्राः ॥२०॥ (अन्वयः) कैश्चित् असौ भारव्यानिकी उदाहृता, यदि पूर्वः इन्दप लावणेन, अन्य प्रयः पादाः उपेन्द्रव नाचरणः कमभेदभद्राः भवन्ति ।। (टीका) केश्चित कविमिरसावुपजातिस्तदा भास्यानिकी निर्दिष्टा, यदि प्रथमः पाद इन्द्रवजा वरणेन, मन्ये त्रयः पा। उपेन्द्रवजावरणः कृत्वा पूर्वोक्तप्रमाद् भेदेन भद्रा:सुनवा भवन्ति ॥ (प्रति०) उदाहता निर्दिष्टा । असौ- उपजातिः । इन्द्रवजाचरणेन- इन्द्रवावर पाहणेन । स्पष्टमन्यस्याख्यातं च ॥ (भाषा) यदि केवल प्रथम चरण में इन्द्रधना के, और शेष चरणों में उपेन्द्रवत्रा के लक्षण हों तो इसी उपजाति को कई एक कवि माल्यानिकी कहते हैं ॥२०॥ For Private And Personal Use Only

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