Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (१.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसे इन्द्रवज्रा कहते हैं । इसके प्रत्येक चरण में ( 55/5515.55 ) ऐसे स्वरवर्ण चिह्न होते हैं ॥ १७ ॥ उपेन्द्रवज्रा. इहैव पादाऽऽदिमलाघवेन, तथा विरामे जतजैर्गुरुभ्याम् | उपेन्द्रवज्रां जिनपादपद्म, - स्तवेच्छवे साधु वदन्ति सन्तः ॥ १८ ॥ ( अन्वयः) सन्तः इहें ततजैर्गुरुभ्यां पादाऽऽदिमलाघवेन तथाविरामे जिनपादपद्मम्तवेच्छये उपेन्द्रवज्रां साधु वदन्ति । (टीका) विद्वांसः इहैवेन्द्रवज्रायां प्रतिपादं जत-जगणानां गुरुद्वयस्य च समावेशेन चरणाऽऽद्याऽक्षराणि लघुकृत्य पूर्ववद्विश्रामे कृते सति जिनपदकमलयुगलस्तुतिमिच्छते जनाय (जिनचरणकमलस्तावकजनार्थम्) उपेन्द्रवज्रां सम्यग् वदन्ति ॥ ( प्रति० ) इह = इन्द्रवज्रायाम् । पादादिमलाघवेन = चरगाप्रथमाक्षरलघुत्वेन । तथाविरामे = पूर्ववद्विश्रामे । साधु=सम्यक् । सन्तः = विद्वांसः ॥ ( भाषा) इसी इन्द्रवज्रा के प्रत्येक चरण के प्रथम अक्षर को लघु करने से उपेन्द्रवज्रा छन्द बनता है, विश्राम इसमें भी पहले की भाँति ही समझना चाहिये, इस का एक एक चरण जगण तगण जगण और दो गुरुओं से बनता है त For Private And Personal Use Only

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