Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
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(४)
आदिमध्यान्तभागेषु भजसा गुरवः क्रमात् । यरता लघुतायुक्ता मनौ गुरुलघु तथा ॥ ५ ॥
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(अन्वयः) भजसा श्रादिमध्यान्तभागेषु क्रमात् गुरवः यरता लघुतायुक्ताः, तथा मनौ गुरुलघु ।
(टीका) भगण जगण - सगणा आदिमध्यान्तभागेषु क्रमशो गुरवः, अर्थादादिभागे गुरुर्भगणो, - मध्यभागे गुरुर्जगणो ऽन्त भागे गुरुः सगण इति । एवं यगण - रगण-तगया लवव', अर्था-' दादिभागे लघुर्यगणो मध्यभागे लघु रगणो ऽन्तभागे लघुस्तगण इति । तथा सर्वगुरुर्मगणः सर्वलघुगगा इर्थः । इदमंत्र तत्त्वम्- प्रतिगणं गुरुलघुरूपास्त्रयः स्वरवर्णा भवन्ति, तत्र गुरुचिहम् - ( 5 ) इति, लघुचिह्नम् - (1) इति, एवं व आदिगुरुर्मग यथा - (Sii) इति, मध्यगुरुर्जगो यथा - (151) इति, अन्तगुरुः सगो यथा - ( 115 ) इति व्यादिलघुर्वगणां यथा - (155) इति, मध्यलबू रगणो यथा - (डा) इति, अन्तलघुस्तगणो यथा(SI) इति, सर्वगुरुगणो यथा - (555) इति, सर्वलघुर्नग यथा - ( 111 ) इतीति ।
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(प्रति०) क्रमात् = क्रमशः । लघुतायुक्ता:लघ बः । शिष्टं स्पष्टम् ।
(भाषा) इन उक्त गणों में भगण आदिगुरु जैसे- (511). जगण मध्यगुरु जैसे- (11). समय अन्त्यगुरु जैसे- ( 115 ). यगण आदिलवु जैसे- (155) रंगण मध्यलघु जैसे- (ज) तगण
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