Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संयुक्ता छन्दःशास्ने विद्युन्माला प्रोक्ता । अत्र प्रथमं मगणद्वयं ततो गुरुद्वयेन प्रतिचरणं-(ऽऽऽऽऽऽऽऽ) इत्येवमष्टौ गुरवः संपद्यन्ते । (प्रति०) तुर्य-चतुर्थे । विश्राम: विरामः (यतिः) । दीर्घा:-गुरवः । माभ्यां मगणद्वयेन । गाभ्यां गुरुद्वयेन । अन्यत् स्पष्टम् । (भाषा) जिस के सभी वर्ण गुरु हों और प्रत्येक चरण के चौथे २ अक्षर पर यति विश्राम हो; अतएव दो मगण और दो गुरु अक्षरों से जिस के प्रत्येक चरण की पूर्ति होती हो,उसे विद्यन्माला छन्द कहते हैं। इसके प्रत्येक चरण में-(55555555) इस प्रकार आठ आठ गुरु होते हैं ॥१२॥ शालिनी. षष्ठो वर्णस्तद्वदेवाष्टमान्त्यः, पादे पादे हस्वतां याति यत्र । तुरश्वैर्विश्रमे सा कवीन्द्रः, शालिन्युक्ता मात्तताभ्यां गुरुभ्याम् ॥१३॥ (अन्वयः) यत्र पादे पार पष्टो वर्णः तद्वदेव अष्टमान्त्यः नवम': ह्रस्वतां याति तुर्यैः अश्वैःविश्रमे मात् तताभ्यां गुरुभ्यां सा कवीन्द्रः शालिनी उक्ता ।। (टीका) यस्यां प्रतिचरणं षष्टस्तथैव नवमो वर्णी लघुत्वं प्राप्नोति तथा आदितश्चनुभिस्तदुपरितश्च सप्तर्भिवणविरामः For Private And Personal Use Only

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