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हमारे भीतर जो विकार और विक्षिप्तताएँ भरी हुई हैं क्या हम उनकी विपश्यना कर रहे हैं ? भीतर के तत्त्व तक कोई नहीं उतर रहा है, सब कुछ बाहर-बाहर । धर्म भी बाहर, भीतर का धर्म बचा ही नहीं है।
कुछ दिन पहले, ऊपर स्वर्ग में, बैकुंठ और सिद्धशिला पर सारे भगवान- रामजी, कृष्णजी, महावीरजी, बुद्धजी, जीससजी- सारे 'जी', सारे महान लोगों ने ऊपर बैठक की कि हम लोग जब तक जिए दुनिया ने हमारी कद्र नहीं की। किसी के कानों में कील ठोकी गई, किसी को सूली पर चढ़ाया गया, किसी को ज़हर दिया गया, किसी को वनवास झेलना पड़ा- जब तक धरती पर रहे कोई इज्ज़त नहीं थी और अब तो सारी दुनिया अपनी खूब पूजा करती है। करोड़ों जैन हैं, हिन्दू हैं, मुसलमान हैं और ईसाई हैं - अपने नाम पर ढेरों मंदिर हैं, मस्ज़िद हैं, चर्च हैं, अपनी बहुत पूछ-परख है। जब तक वे सशरीर थे और जिए, तब पता नहीं कितनों ने पूछा और कितनों ने लताड़ा, लेकिन अब तो उनके नाम पर लाखों के चढ़ावे बोले जाते हैं। मंदिर निर्मित होते हैं, मंदिरों की प्रतिष्ठाएँ होती हैं, ध्वजारोहण होता है, लाखों लोग उनके नाम की मालाएँ जपते हैं। ऐसा विचार कर सारे भगवान अपने-अपने अनुयाइयों के बीच पहुँचे । रामजी अपने अनुयाइयों के बीच आए। उन्होंने देखा कि अमुक नगर में जोरदार प्रतिष्ठा हो रही है, हैलीकॉप्टर से फूल बरसाए जा रहे हैं, लोग उनकी पत्थर की मूर्ति को बिठाने के लिए पाँच करोड़ रुपए का चढ़ावा ले रहे हैं और मंदिर के शिखर पर एक कपड़े की ध्वजा चढ़ाने के लिए सवा करोड़ रुपए का चढ़ावा बोल रहे हैं । रामजी तो खुश हो गए कि उनकी तो जबर्दस्त पूछ हो गई। जीते जी इतनी पूछ न थी । जीते जी तो गालियाँ ही मिलती हैं। अगर जीसस सलीब पर न टंगे होते तो क्या इतने विश्वविख्यात हो सकते थे ? महावीर के कानों में कीलें न ठुकते और उन्होंने इतनी समता और सहनशीलता न दिखलाई होती तो क्या वे आज इस तरह पूजे जाते?
भगवान राम ऊपर से नीचे आए और भीड़ में शामिल हो गए। राम और महावीर साथ ही आए थे। जैसे ही किसी ने उनको देखा लोग चिल्लाए- आ भई, बहुरूपिया आ। इसे भी एक रुपया दे दो। लोगों को वह बहुरूपिया नज़र आया, उन्हें लगा कि उसने बहुत अच्छा स्वांग रचाया है। महावीरजी को देखकर तो लोगों की हालत ही खराब हो गई, वे तो दिगम्बर हैं। उन्हें देखकर लोग लाठियाँ भाँजने लगे कि यह क्या तरीका है, मंगल कार्य में यह अमंगल
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