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पंचशील: आखिर आवश्यक क्यों ?
हम लोग ऐसे मार्ग पर चल रहे हैं, जहाँ बुद्धत्व का कमल और संबोधि का प्रकाश है। वह मार्ग जहाँ सुन्दर उपवन और रास्ते हैं। इस मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए महापुरुषों का ज्योतिर्मय सान्निध्य भी है। यह विपश्यना का मार्ग है। विपश्यना का अर्थ है- सत्य को, अपने-आपको, अपनी प्रकृति को भलीभाँति विशेष रूप से पूरी जागरूकता के साथ देखना, पहचानना और जानना। कोई भी अगर सत्य के रास्ते पर क़दम बढ़ाता है, तब सत्य को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि वह स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग, उच्च कुल का है या मध्यम अथवा सामान्य कुल का है। विपश्यना का मार्ग सबके लिए खुला है। चाहे वह बालवय का हो या युवा अथवा वृद्ध हो । सत्य के इस मार्ग पर चलने वाले का सम्बन्ध केवल इस बात से है कि उसकी इसके प्रति कितनी श्रद्धा है, प्यास है और इसे कितना अंगीकार करने को तैयार है।
विपश्यना का मार्ग विशुद्ध रूप से साधना का मार्ग है। स्वयं को जानने
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