Book Title: Vipashyana
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 84
________________ संसार की और प्रार्थना निर्वाण की, बड़ी विचित्र दशा है यह। प्रश्न है : यह आसक्ति कैसे टूटे ? आसक्ति से मुक्त होने के लिए ही लोग सत्संग में जाते हैं, आराधना और तपस्या करते हैं। पर प्रश्न यही है कि क्या यह सब करने से आसक्तियाँ टूट जाती हैं ? पर्व-तिथियों को लोग व्रत करते हैं- व्रत करना अच्छी बात है, लेकिन प्रश्न यही है कि व्रत करने से मन में रहने वाले कषाय के उद्वेग और भोग की तरंगें, भोग के अन्तर-प्रवाह क्या कटते हैं, टूटते हैं या वैसे के वैसे बरकरार रह जाते हैं ? कहने को तो सबको पता है कि गुस्सा रिश्तों को खत्म कर देता है, पराई स्त्री को ग़लत निगाहों से देखना ग़लत है, सिगरेट, तम्बाकू, शराब, गुटका स्वास्थ्य के दुश्मन हैं, मृत्यु के बाद कोई भी इन्सान अपने साथ दौलत तो क्या दो मुट्ठी आटा भी नहीं ले जाता, सब बातों का पता है, फिर भी मूच्र्छा इतनी प्रबल है, आसक्ति और लालसा इतनी गहरी है कि जान री अपना कोई वजूद नहीं रख पाती और इस तरह हम लोग विचार, वचन और व्यवहार - तीनों से ही ग़लत, नकारात्मक आचरण करना शुरू कर देते हैं। ताले का नियम है कि उसमें चाबी दाईं ओर घुमाई जाए तो बन्द ताला खुल जाता है, पर अगर बाईं ओर घुमा दी जाए, तो खुला ताला भी बन्द हो जाता है। बस, ज़रूरत है चाबी को किस तरफ घुमाया जाए, इसके ज्ञान की। ताला किधर से खुलेगा, आप यह तरीका जान सकते हैं, पर अगर कोई खालना ही न चाहे, तो उसका क्या किया जाए। कहते हैं : एक बार नारद ने प्रभु से कहा- प्रभु दुनिया में इतने पीड़ित लोग हैं और आप उद्धारक कहलाते हैं तो पीडितों का उद्धार क्यों नहीं कर देते ! भगवान ने नारद से ही कह दिया कि मेरी आर से तुम ही चले जाओ और उनका उद्धार कर दो। नारदजी पृथ्वी पर आए तो उन्हें सूअर सबसे पीड़ित नजर आया। सोचा कि इस सूअर का उद्धार करता हूँ। नारदजी सूअर का उद्धार करने के लिए उसे लेकर चले तो सूअर ने कहा- ठहरो, तुम कौन हो ? नारद ने कहा- मैं ब्रह्मलोक से आया हुआ, वहाँ का देवर्षि, राजर्षि हूँ। सूअर ने पूछा- जो भी हो, पर तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो ? नारद ने बताया- 'स्वर्ग में'। सूअर बोलाकिसलिए? नारद ने कहा- तुम बहुत पीड़ित हो, तुम्हारा उद्धार करने के लिए स्वर्ग ले जा रहा हूँ। सूअर ने कहा- मेरा उद्धार ही है, तुम कौनसा उद्धार करने 83 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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