Book Title: Vipashyana
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 153
________________ चित्त को भी शांत, केन्द्रित, सचेतन करने में सफल होते चले जाएँगे । ज्यों-ज्यों अनुपश्यना लगातार करते जाएँगे, त्यों-त्यों अपने चित्त की धाराओं को, काराओं को भी काटने में सफल होते जाएँगे । चित्त के कषाय, चित्त के प्रभाव, चित्त के उद्वेगों से भी मुक्त होने में सफल होते चले जाएँगे । जैसे देह से व्यक्ति देहातीत हो जाता है, विचारों से विचारातीत हो जाता है, वेदनाओं से वेदनातीत हो जाता है। वैसे ही चित्त से चित्तातीत हो जाता है, चित्त मुक्त हो जाता है। मन भड़कीली, चंचल प्रकृति का है उसे इस गीत की पंक्तियाँ ज़रूर गुनगुनानी चाहिए रे मन हो जा कुछ पल मौन । देख सकूँ मैं जो है जैसा, समझ सकूँ मैं कौन ! रे मन ! कुछ पलों के लिए, कुछ क्षणों के लिए शांत हो जा, ताकि मैं सुन सकूँ, देख सकूँ कि वास्तव में भीतर बैठा हुआ मैं कौन हूँ। तेरे भीतर तो तरंगें चलती रहती हैं, तू मुझे भटकता रहता है, आइना हिलता रहता है तो मैं जान नहीं पाता कि मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, यहाँ से कहाँ जाना है । मैं देख नहीं पा रहा हूँ कि मुझे कौनसे संबंध बनाए रखना हैं और किन संबंधों का त्याग कर देना है। पर मैं समझ जाऊँगा बस, मन तू दो पल के लिए शांत, ठंडा हो जा । जिस तरह माता-पिता अपने बच्चे को समझाते हैं हमें भी अपने मन को समझाना शांत । बहुत भटक लिए अब थोड़ा शांत । अब मौन । अब सचेतनता में अन्तरलीनता । ध्यान में एक जागरूकता ज़रूर बनाए रखें कि गहरी साँस लें और गहरी साँस छोड़ें और इन श्वासों की अनुपश्यना करते रहें । साँसों पर सचेतन होने से काया की सचेतनता भी अपने-आप सधने लग जाएगी । चित्त भी शांत होता चला जाएगा। जैसे ही हम भटके, चित्त कहीं गया फिर वही गहरी साँस लेना, गहरी साँस छोड़ना । सचेतन प्राणायाम करें । चित्त के इधर-उधर जाते ही श्वास पर पुनः पुनः सचेतन हो जाएँ, काया की अनुपश्यना भी सतत करें । दिनोंमहीनों तक- जब तक चीज़ हाथ नहीं लगती साधना, अनुपश्यना करते रहें । जितनी हमारे भीतर लगन होगी, तन्मयता होगी, बात आगे बनती चली जाएगी। इसलिए महावीर और बुद्ध कहते हैं- लगातार देखो, लगातार जागो, अपनी ओर से लगातार अनुपश्यना करते रहो । अभी एक फिल्म आई थी - लगे रहो मुन्ना भाई - साधना के लिए भी 152 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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