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समझ साधना की होती है उतनी पद्धतियाँ वह अपने जीवन के साथ जोड़ता है। ये बाहर के त्राटक एकाग्रता बनाने के लिए हैं। अन्ततः तो व्यक्ति को अपने भीतर ही उतरना पड़ता है। अपनी-अपनी स्थापना के लिए साधना-पद्धति के अलग-अलग नाम दिए जाते हैं, अन्यथा आखिरकार यह काया ही है जिसके माध्यम से, जिस पर ध्यान किया जाता है। फिर चाहे षट्चक्रों पर ध्यान हो कि पूरी काया पर कि हृदय पर या आज्ञा चक्र पर या ओऽम, सोऽम पर ध्यान कर लो, कुल मिलाकर चलना-फिरना इस काया में ही है। साढ़े तीन हाथ की इस काया में ही हमारा सारा सत्य समाहित है।
हमारे सामने यह सत्य स्थापित हो जाना चाहिए कि- तेरा तेरो पास है अपने मांही टटोल । कबीर ने कहा था- मैं तो तेरे पास में- जो कुछ है वह तुम्हारे ही पास है यहाँ तक कि प्रभुजी तुम्हारे ही पास में है। इसीलिए वे कहते हैं- कस्तूरी कुण्डल बसै, मृग ढूँढे वन माही- सब तुम्हारे ही पास है। इस काया के अंदर ही, बाहर कहीं भटकने की ज़रूरत नहीं है। हमारी जो भी ज़िंदगी है चाहे शास्त्र उसे नश्वर या अनश्वर कहे, चाहे कोई हमें क्रोधी कहे या भोगी, हमारे जो भी गुण-दुर्गुण-सद्गुण हैं सारे इस काया के इर्द-गिर्द ही व्याप्त हैं। हमारा समाज, संबंध, पत्नी, माँ-बाप, भाई-बहन ये सब क्या हैं, इसी काया से जुड़े हुए रिश्ते हैं। काया अर्थात् जीवन ! जीवन का एक अंग काया भी है, चित्त भी है। चित्त से साक्षात्कार करने के लिए काया से साक्षात्कार करना ज़रूरी है। चित्त और काया अलग-अलग नहीं हैं।
चित्त हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। यह मस्तिष्क का ही एक हिस्सा है, मस्तिष्क की ऊर्जा है, विद्युत तरंग है। यह चित्त मस्तिष्क में ही रहता है और मस्तिष्क काया में रहता है। इसलिए चित्त और मन काया से भिन्न नहीं है और न ही हमारी काया मन से भिन्न है। जो चित्त में उठेगा वह काया में भी उठेगा। जब चित्त और चेतना की बात उठती है तो जान लें कि चित्त काया का हिस्सा है और चेतना हमारी काया को ऊर्जा देती है। चित्त, चेतना, काया सब एक-दूसरे से घुले-मिले तत्त्व हैं। ऐसे ही जैसे इन्द्रधनुष के रंग। चित्त, मन, बुद्धि, काया, अहंकार आदि इन्द्रधनुष के रंगों की तरह सब एक-दूसरे से घुले-मिले हैं, कोई किसी से स्वतंत्र नहीं है, सब एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं । काया आत्मा को प्रभावित करती है, आत्मा काया को प्रभावित करती है। हम तो स्वयं से मुखातिब हों, बाकी सारे शब्दों को हटा दें। और देखें कि क्या हैं हम ! क्या हूँ मैं !
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