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कोई कर सकता है। तपस्या का उद्देश्य है, तन-मन पर लगाम लगाना, भीतर की शुद्धि करना। इसी तरह आप चाहें तो शील धर्म के पालन का उपवास कर सकते हैं। जैसे मैं हर महीने की 1, 5, 11, 15, 21, 25 और 31 तारीख को शील-धर्म का पालन करूँगा, अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको 1 महीने में 7 उपवास का लाभ हो गया। ये सब मन के उपवास हैं। जैसे अगर आप एक महिला हैं तो आपके पास 100 साड़ियाँ होंगी, आप अपरिग्रह का उपवास कर सकती हैं। माना आपसे साड़ियों का मोह नहीं छूटता, कोई बात नहीं, भले ही हर महीने नई साड़ी खरीदो, पर एक मानसिकता तैयार कर लो कि मैं नई साड़ी खरीदते ही पुरानी साड़ियों में से 1 साड़ी किसी गरीब को या घर में काम करने वाली बाई को दे दूंगी। यह भी अपने-आप में तप हो गया। बुद्ध कहते हैं हम तपस्वी बनें, आतापी बनें। महज 8-8 दिन या 30-30 दिन भूखे रहने को तपस्या न मानें । तपस्या मन की भी हो, तपस्या जीवन की हो। वीणा के तारों को हमेशा याद रखिए और जीवन को वीणा के तारों की तरह साधे और इस तरह जीवन का आनन्द लें।
सिद्धार्थ को तपस्या करते हुए पाँच-साढ़े पाँच वर्ष बीत गए। जैसा कि उस समय चलन था, सघन तपस्या करते चले गए। लेकिन एक दिन महसूस हुआ कि बहुत तपस्या कर ली, लेकिन हासिल कुछ न हुआ । न आत्मा मिली, न आत्मदर्शन हुआ, न ही किसी त्रिकालिक सत्य का बोध हो पाया। सोचा छोड़ो, बहुत हो गई साधना । पत्नी को छोड़ा, बच्चे को छोड़ा, राजमहलों को छोड़ा और निर्जन एकाकी वनों में जाकर तपस्या कर इतने वर्ष व्यतीत कर दिए, अखंड मौन रहा, तन-मन को तपाया, ध्यान-साधना की. फिर भी संतोष न हुआ। अर्हता, अरिहंत पद, बुद्धत्व या संबोधि उन्हें उपलब्ध न हो सकी। तब वे इन सबको छोड़कर बाहर निकल आए। दूर देखा तो तालाब, झील थी। वहाँ जाकर स्नान करने का विचार किया। गौतम झील के पास पहुँचे, स्नान किया, कुछ ताज़गी आई। स्नान कर जब झील से बाहर निकले तो उनकी नज़र एक गिलहरी पर गई। उन्होंने देखा कि वह गिलहरी झील में जाती है, पूँछ को डुबोती है और बाहर आकर पूँछ झटकती है, उसमें से कुछ बूंदें पानी की टपक जाती हैं। उसे बार-बार इसी क्रिया को दोहराते देखकर उन्हें विस्मय हुआ और उन्होंने गिलहरी से पूछा- एक बात बताओगी ? गिलहरी ने कहा- पूछिए महात्मन् ! गौतम ने कहा- मेरे मन में जिज्ञासा उठ रही है कि तुम बार-बार पानी में जाती 52
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