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का, संसार में होश और बोधपूर्वक जीवन जीने का मार्ग है। यह मार्ग जीवन में किसी भी प्रकार का विरोधाभास खड़ा नहीं करता। यह व्यक्ति को समाज से विमुख नहीं करता। कार्य और व्यापार से भी दूर नहीं ले जाता । यह तो प्रत्येक कार्य को जागरूकतापूर्वक करने की प्रेरणा देता है। आज जब हम साधना के पथ पर क़दम बढ़ाने को तत्पर हो रहे हैं तो हमें इसकी पूर्व भूमिका अवश्य जान लेनी चाहिए क्योंकि क़दम आगे बढ़ाने के लिए मजबूत धरातल की आवश्यकता होती है अन्यथा वह आगे के अज्ञात रास्तों पर चलने में असमर्थ रहेगा। व्यक्ति के विचार, वचन और व्यवहार के साथ पहले से ही मर्यादाएँ, अंकुश, संयम लागू हो जाना चाहिए। इसी के लिए महावीर ने व्रत की प्रेरणा दी, बुद्ध ने शील की और पतंजलि ने यम की।
व्रत, शील और यम कहने को तो अलग-अलग शब्द हैं, पर तीनों के बीच में कहीं कोई विरोध या दूरी नहीं है। महावीर ने पाँच व्रत दिए, वही पाँच व्रत लगभग मिलते-जुलते बुद्ध ने पंचशील के रूप में कहे । वही पंचशील थोड़े परिवर्तन के साथ पतंजलि ने यम के रूप में प्रतिपादित किए। पतंजलि ने यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के नाम से योग के आठ अंग या चरण दिए। याद रखिए जब हम किसी महापुरुष की अमृतवाणी पर चिन्तन करते हैं, तब महापुरुषों के नाम बदल सकते हैं, उनके शब्द बदल सकते हैं. अभिव्यक्ति की शैली अलग हो सकती है, पर सत्य में कोई परिवर्तन नहीं आता है। सत्य सदा सभी प्राणियों के लिए एक-सा रहता है। जैसे- सूरज सबको अपनी रोशनी देता है, चाँद सबको अपनी शीतलता प्रदान करता है, हवा सभी को सुकून देती है, आग सभी की रोटियाँ पकाया करती है, ठीक ऐसे ही महापुरुषों का सत्य और अमृतवाणी सार्वभौम कल्याणकारी है, हितकारी और मंगलकारी है। वह अतीत में भी कल्याणकारी थी, आज भी है और भविष्य में भी रहेगी। ___ अगर हम महावीर के सूत्रों पर चिन्तन करते हैं तो यह न समझें कि हमने बुद्ध को छोड़ दिया है। बुद्ध पर चिन्तन-मनन करते समय महावीर को दरकिनार नहीं करते । सत्य तो यह है कि सारे भेद ऊपर-ऊपर के हैं। मिट्टी के दीये भले ही अलग हों, पर सभी दीयों की ज्योति तो एक ही होती है। इसलिए महापुरुषों की वाणी एक ही सत्य को प्रतिपादित करती है। जब हम ज्ञान के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं तो जीवन में पंचव्रत या पंचशील या पंचयमों का पालन
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