Book Title: Vimalnath Puran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ TEER पyaraVV m DIEबीविशत् । पत्रं नत्वैव परछ सोमशर्माभिधश्चत ॥ ४ ॥ कस्येदं दूत सत्पत्रं प्रोवाच मतिसागर । राजगृहपुराधीशा राज्ञोपणि. | केन च ॥ ५० ॥ प्रेषितं भो नराधीश! श्रुत्वा पत्र लुलोक सः । स्वस्तियोदं निपत्याशु मारुदेवं मनोहरं ॥ ५१ ॥ राजग्रहात्पुरात् श्रीमान् महाराजोपय णिकः प्रणिगदति शुभाय वै चंद्रपुर्या' च तत्पतेः (तिः) ।। ५२ ॥ सर्वे सामंतभूपाश्च शासनं पालयंति मे ! क्ष :स्त्वं च कथं सेवां नाकरोषि स्वगर्वतः ॥ १३ ॥ यदि राज्ये भवेदाशा हागंतव्यं स्वया तदा । श्रुत्थेति पत्रसद्धाबं पतिपद्य ससर्ज तं ॥ ५४॥ चिसयामास चिरी स्वे सोमशर्माभिधो नपः। येनोपायेन पंचत्वं प्राप्नोति तं करोम्यहं॥ ५५॥ ध्यायेत्थं विद्यया कृत्या घोटकं S: दुर्धरं द्रढं । मुक्ताफलाविस स्तुभाभृतं पाहिशासकं ॥ २६ ॥ तदापनगिको दृष्ट्वा मुमोद मानसे स्वके । परीक्षायै चटित्वासौ | आज्ञासे वह चंद्रपुरकी ओर चल दिया। सभामें पहुंचकर राजाको नमस्कारकर और पत्र देकर | अपने योग्य स्थानपर बैठ गया। पत्र पाकर राजा सोमशर्माने कहा-अरे दूत ! कहांस तू आया - और किसका यह पत्र लाया है ? उत्तर में दूतने कहा--राजन् ! राजगृहके स्वामी प्रसिद्ध राजा उप श्रेणिक हैं उन्होंने ही यह पत्र आपके लिये भेजा है । दूतके मुखसे यह वचन सुन राजा सोमब/ शर्माने पत्र हाथमें ले लिया और उसे अपने मंत्रीको वांचने दे दिया वह भी स्वस्ति और लक्ष्मी 27 को प्रदान करनेवाले महा मनोहर सिरनामेंपर लिग्ने हुये भगवान ऋषभदेवके वाचक शब्दोंको अर्थात् सिरनामेको छोड़कर जो कुछ मी उसमें आज्ञा लिखी थी इसप्रकार उस यांचने लगा--- | चंद्रपुरीमें उसके स्वामी राजा सीमशमाके कल्याणकी अभिलाषासे राजगृहपुरसे श्रीमान् महाराजा उपश्रोणिक यह आक्षा प्रदान करते हैं कि समस्त बड़े बड़े सामंत और राजा विनय| पूर्वक मेरी आज्ञाका पालन करते हैं उनके सामने तुम बहुत क्षुद्र राजा हो परंतु अहंकारके पुतले होकर मेरी आज्ञा स्वीकार नहीं करते, यह सर्वथा अनुचित है। आजतक जो हुआ सो हुआ परंतु अबसे तुम्हारे लिये मेरी यह आज्ञा है कि यदि तुम्हें राज करनेकी इच्छा है तो तुम यहांपर आओ और मेग सवा करो। बस पत्रके लेखको इसप्रकार सुनकर और उसका भीतरी तात्पर्य EN समझकर दूतको तो बिडा कर दिया एवं “राजा उपश्रेणिक जिस उपायसे प्राण रहित हो जायं Y PATREYAFFAYE KKREERY

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