Book Title: Vimalnath Puran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 11
________________ राज्यलक्षणलक्षितःणिकाख्यो वरीयांश्च रूप जितमन्मथः ॥ ४५ ॥ अन्ये पंचशतान्येष पुमा आसन् सुभूपतेः । तैः साकं विधिमला धान् भोगान् भुजन् स सुखतः स्पितः ।। ४६ ॥ अथ चंद्रपुराधीश: सोमशर्मातिविश्रुतः । मनुते नैव भूपस्य शासन शुभशासन ॥ १७ ॥ तोपत्रंणिको राजाऽलीलिखत्महलं घरं । दरवा दूतकर शंघषयामास तं प्रति ॥ ४८ ॥ मतिसागराभिधो दूतो गत्वा दरघा न्य. सरीखी थी और वह मुखरूपी चंद्रमासे अमृतपीनेकी अभिलाषासे उसकेमस्तकपर विद्यमान थी ऐसी जान पड़ती थी। उस महाराणीका ललाट भाग आधे चंद्रमाके समान शोभायमान था क्योंकि चंद्रमा जिसप्रकार हिरणके चिहका धारक माना जाता है, लालाट भी नेत्ररूपी हिरणोंका धारक था। चंद्रमा जिसप्रकार मंडल के कैचमें (पारसे में ) रहता है ललाट भी सुवर्ग:मयी कुडलरूपी चक्र के अर्ध भागमें था। इसप्रकार अपने मनोहर रूपसे कामदेवके समान वह राजा प्रीतिपूर्वक kdi उस रानी इंद्राणीके साथ जुदी जुदी कातुओंके नानाप्रकारके भोग भोगता था एवं हास्य नाना प्रकारकी कीड़ा और विनोदासे वह भोगोंकी सुंदरताका अनुभव करता था ॥ ४०-४४॥ __महाराज उपश्रेणिकके महाराणी इद्राणीसे उत्पन्न पुत्र श्रेणिक था। वह कुमार श्रेणिक उत्तमोत्तम राजलक्षणोंसे मंडित था । उत्कृष्ट था और अपने मनोहर रूपसे कामदेवकी तुलना करता ॥ ४५ ॥ कुमार श्रेणिकके सिवाय राजा उपश्रेणिकके और भी पांचसौ पुत्र थेजिनके साथ 2 अनेक प्रकारके भोगोंको भोगता हुआ वह राजा सुखपूर्वक काल व्यतीत करता था ॥ ४६॥ इसी पृथ्वीपर एक चंद्रपुर नामका नगर है। चंद्रपुर नगरका स्वामी उस समय राजा सोमशर्मा था जो कि अत्यंत पराक्रमी और प्रसिद्ध था। राजा उपश्रेणिककी आज्ञा यद्यपि शुभ थी तथापि वह सोमशर्मा उनकी आज्ञा मानना नहीं चाहता था ॥ ४७ ॥ राजा उपणिकको यह बात पसंद न थी इसलिये शीघ्र ही उन्होंने एक आज्ञापत्र लिखवाया। दूत बुलाकर उसे लोंपा एवं शीघ्र ही उसे राजा सोमशर्माके पास भेज दिया ॥४८॥दूतका नाम मतिसागर था । राजाकी यहपहपकरमरपाका PLEASEKCKEKEY । मान

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