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विलासवई-कहाँ घत्ता तथा ध्रुवकना छंदोः(१) षट्पदी छड्डणिका
लक्षण- १० + ८+ १३-३१ मात्रानी बे पंक्ति १० अने १८ मात्राए यति, पाद-१-२, ४-५, ३-६ अंत्यानुप्रास.
संधि १, ८ अने ११ ना ध्रुवक अने घत्ता मां आ छंद प्रयोजायो छे. हेमचंद्राचार्ये आ छंदने द्विपदी मां गणाव्यो छे. हेमचंद्रे आपेला उदाहरणमां पण दश अने अढार मात्रा पछी यति छे, परन्तु अनुप्रास मात्र ३१ मात्रा पछी छे. एटले के हेमचन्द्राचार्ये बे ज पाद मान्या छे.' पारे स्वयंभू-छंद मा छ पाद गणी पहेला-बीजा, चोथा-पांचमा अने त्रीजा-छट्ठा पादना अंते प्रास गणावेल छे. साधारण कविए सर्वत्र आ बीजा प्रकारनी छड्डणिका प्रयोजेल छे. (२) पादाकुलक
लक्षण:- गणव्यवस्थारहित, १६ मात्रा, अंत्यानुप्रास.
संधि ६ अने ९ ना ध्रुवक तथा पत्ता मां आ छंद छे. कडवकोमा आवेल आ छंदनी नोध आगळ आवी गई छे. (३) पारणक
लक्षण- १५ मात्रा प्रति चरण. संधि- १० कडवक १-२-३ घत्ता तथा घुवक. ? (आंतरसमा चतुष्पदी) मात्रा २१, यति ११, १०
संधि ५ तथा ७, बधा कडवक-घत्ता तथा ध्रुवक (५) ? (आंतरसमा चतुष्पदी)
मात्रा २९, यति १३, १६
संधि ४ बधा घत्ता तथा ध्रुवक (६) ? (आंतरसमा चतुष्पदो)
मात्रा ३०, यति १४, १६.
संधि-३ बधा घत्ता-ध्रुवक (७) ? (आंतरसमा चतुष्पदो)
मात्रा २८, यति १५, १३ संधि-२ बधा घत्ता ध्रुवक ? (आंतरसमा चतुष्पदी) मात्रा २८, यति १६, १२ संधि-१० कडवक ४ थी २७ ना घत्ता. प्राकृत भाषामां रचायेल कवि-प्रशस्ति प्रसिद्ध आर्या छंदमां छे. १. छन्दोनुशासन ७. १७. २. दसकलपरिबद्धहे, अट्ठणिबद्धहे, तेरहकल संभाविअहे ।
पढमविदिअपअ कुणु, तइअ पुणु विउणु, छइडणिआ छप्पाइअहे ।। स्वयंभू० ८ ११
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