Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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११.३४ )
विलासवईकहा
[३३]
एरिस पणाम-पय उच्चरंतु कंताए सहिउ उद्विउ तुरंतु । उन्वेल्लिय कोमल बाहु-दंडु करयल-निम्मज्जिय विमल-गंडु । काऊण असेस वि गोस-किच्च आणत्त तेण तो नियय-भिच्च ।
सामग्गि सयल सहसा करेह वय-गहणह वेल संपत्त एह । ५ आएसाणंतरु सव्वु तेहिं संपाडिउ तक्खणे सेवएहिं ।
तो हाय विलित्त विसुद्ध-वेस नरनाह-पमुह हुय निरवसेस । किय सयल वि अजियबलेण ताहं निक्खमण-महिम जणयाइयाहं । सह-सेण चलइ जा नहयराण सा कारिय सिविय महप्पमाण ।
जसवम्म-सहिउ तहिं खयर-राउ आरूटु देवि-मित्तेहिं सहाउ । १० उच्छलि उ महंत उ तूर सदु जणु खुहिउ असेसु महा-विमद्द ।
तो दाणई देंतउ जणु खामंतउ राय-मग्गि पहु अवयरिउ । लोएहिं रुयंतेहि अंसु फुसंतेहिं गुण सुमरंतेहिं परियरिउ ॥३३॥
पुर-मज्झि विभूइहि जाव जाइ नायरियहं दिद्विहिं ताव ठाइ । जंति परोप्पर दुक्खियाउ सोए नयणंसु फुसंतियाउ । हले कीस नराहिव दिक्ख लेइ किं एरिसु रज्जु न चिरु करेइ ।
वेरग्गु कवणु हूउ इमस्स मण-इठ्ठ सयलु संपडइ जस्स । ५ एह अज्ज वि तरुणउ कसिण-चालु तो हले पवज्जहे कवणु कालु । एहु लइउ कवणें वुड्ढत्तणेण छड्डइ संसारहं सोक्खु जेण । कवि जंपइ अइ-सोहग्गियाए अवमाणि उ होसइ महिलियाए । सा भणइ न जुत्तउं कियउं ताए पुरिसेहिं सहुं का अक्खडिय माए ।
सा तारिस होसइ कवण देवि वाहोडइ किं न पाएहिं पडेवि । १० रूसंतई सरिसउं कवणु माणु माणह वि बहिणि भल्लउ पहाणु । [३३] २ ला० करयलेहि निमज्जिय १. पु०-गहण-वेल ५. ला० तक्खणेणं ११. पु. ____ दाणई चिंतउ . मग्गे १२ ला०अंसु मुयतेहि [३५] ४. ला० हूयउ इमस्स ५ ला० पवज्जहि ८. ला० पुरिसहिं
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