Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 291
________________ १८ संधुक्किअ - ३.१९.२ (संधुक्षित ) - संधुक्युं, भूक्युं ( धुनि संदीपने है० घा० ) संपत्त ७. २५ . २ ( संपत्ति ) संपत सई २. २०.९ ( स्वयम् ) - पोते V समाण - (मम् +आपू ) - समाप्त करवुं ( प्रा० व्या० ४. १४२ ) समाणमि - ७.२४.१० वर्त० प्र०ए०व० समूसिय ५. ३१.१० ( समुच्छ्रित+क ) ऊंचे रहेलं - * सयत्तअ ६. ९. १२ • हर्षित, खुश थयेल (दे० ना० ८.५ ) सयाणिया ५. ३. १ ( सज्ञाना ) - शाणी सरथंभ - ११.९.६ ( शर-स्तम्ब ) - तृण - समूह *सरे २.१०.९ माटे V * सलवल -सळवळ सलवलंत - १.२३.१० वर्त००० ० सलूगअ - ४.५.५ ( सलावण्यक) - सलूणुं, सुन्दर सलोअ ९. २४. ३ ( सलावण्यक ) - सलूं, सुन्दर वाणिय ८. २६. १० १. स - वर्णक - वर्णक-सुगंधी मसाला. वाळु (तंबोला) २. स - वणिक - वणिकवाळु ( - हाट साथे ) ३. स - पाणिय- पाणीवाळु (सरिता साथे ) ४. स - वाणी - वाणीवाळु ( नर-मुख साधे ) सव्वरिय - १०.१४.११ ( शर्वरी ) रात सहिण - ३१८.१ (लक्ष्ण ) - बारीक सूक्ष्म सहेज्जअ - ६ १६.४. ( सहायक ) - सहायक सइणी ८. १२. ७ (शाकिनी ) डाकण, शाकणी सारिखिया ३. २२.९ ( सहशिका ) - - - - - सरखी, समान सारिच्छिया सरखी, समान साली - — Jain Education International ८. ४.९ ( सहशिका ) - १०.५.१३ ( रयाली) -साळी सालि इंजिया भञ्जिका ) साबअ ८. २६. १३ १. ( श्वापद् ) - कुतरुं २. ( श्रावक ) सावज्ज - ह साहि ८. पूतळी जंगली हिंसक प्राणीओ २९. ८ ( शाल जैन गृहस्थ ( सावद्य ) - सावज सिंह आदि - १०.५.१७ (शाखिन् ) - वृक्ष ६. १४. १२-१३ For Private & Personal Use Only १. (स्वाख्यात) सारी रीते क २. (स्वाधीन) पोताने अधीन ३. ( साधित) - सिद्ध कर्यु, सायुं ४. ( स + अधिक) - विशेष V साह ( कथयू ) - कहेतुं साहेसु - ३.१९.१२ आज्ञा ० द्वि०ए०व० सिंबलि ११. ४. ५ ( शाल्मलि ) नरकमां आवेलुं शाल्मलि नामनुं वृक्ष सिक्खाव - ( शिक्षापय् ) शीखववुं सिक्खाविऊण १०.२३.६ - सं०भू० कृ० *सिड - ३.११.२ ( सितपट ) - सद सिद्धत्थ - ३.६१२ ( सिद्धार्थ ) - सरसव सिप्पी ३. १. ११ ( शुक्ति ) – सीप, छीपली ( प्रा० व्या० २.१३८ ) सियभड्ड - २.२०.९ (सित-भद्र ) - मुंडित साधु सियas - ३.१.३ ( सित-पट ) - सढ, पाल सिलिप्स - ८.३३.७ (लिट ) - सुन्दर, सुयुक्त *सिहिण - १२३.९,५.२.३ - स्तन (दे०ना० ८.३१ ) सीस - ११.२.६ १. शीर्ष = मस्तक ( रावण साये ) २. शिष्य = शिष्य ( मुनि साथे ) V सुण- (श्रु ) - सांभळवु सुणि- १०.१४.११ - आज्ञा ० द्वि०ए०व० सुति - ६.१.१० वर्त० ० ० ० सुत्र - ९.३२.४ - कर्म० वर्त० तृ०ए०व० सुव्वङ ५.११.३ कर्म० आज्ञा ०तृ०ए०व० सुणे - १.२.१ - आज्ञा ० द्वि० ब० ब० www.jainelibrary.org

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