Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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३२
काउसग्ग-११.२४.१० ( कायोत्सर्ग)कायाना व्यापारनो अमूक समय सुधी त्याग करवो ते-गमे तेवी प्रतिकूळता होवा छतां शरीरने निश्चल राखq. कुणिम-आहार-११.२८.६ (कुणप-आहार)
-मांसाहार कुपल -जोय : ६.४.४ (कुशल-योग)- मन
वचन-कायाना शुभ व्यापार, पुण्य -प्रवृत्ति. कुपल-संच अ- ५.३०.५ (कुशल-सञ्चय)
पुण्योपार्जन खय-उपसम- ११.१७.१० (क्षय-उपशम)
-केटलेक अंशे कर्मनो नाश ते क्षय अने
केटले अंशे कर्मने दबाव वां ते उपशम. खगसेंदि- ११.३८.१३ (क्षपक-श्रेणि)___ कषायोनो समूळगो नाश करवानो क्रम गच्छ- ११.३२.४२ (गच्छ)- गण, संघ,
साधु-समुदाय गणहर- ११ ३२.११ (गणधर)- तीर्थकरना
प्रधान शिष्य, गच्छना नायक गणिणी ११.२६.११ (गणिनी)- गणमां
मुख्य स्थान धरावनारी साध्वी गरहिय- ११.२६.९ (गर्हित)- निंदेलं. गुरु
समक्ष पोते करेला पापनी निंदा करवी ते
गरिहा (सं० गर्दा) गिहिलिंग- ११.३२.११ (ग्रहिन् + लिङ्ग)
गृहस्थ वेशमा ज सिद्ध थनार गेवेज्जाणुत्तर- ११.३९.४ (अवेयक-अनुत्तर)-लोकमां निवा स्थाने रहेनार देवलोक ते गैवेयक अने तेथी पण उपरना देवलोक
ते अनुत्तर चउगइ- ९.४.१०,११.३.७ (चतुर्गति)
चार गति-चार प्रकारनी जीव योनिः नारक तिर्यंच, मनुष्य अने देव चउणाण-धारणो- ९.३.१२ (चतुर्शान
धारक) मति, श्रुत, अवधि अने मन:पर्याय ए चार ज्ञान धारण करन र
चउरासी-जोणि-लक्ख ११.३.५ (चतुर.
शीति-योनि-लक्ष)- चोराशी लाख प्रकारनी
जीव-योनि चरण- ११.१७.३,११.३२.२८ (चरण)
चारित्र, संयम चारण- ९.३.१२,११.१.३ (चारण-मुनि) 'चरणं गमणं विद्यते येषाम्'- जे आकाशमां सर्वत्र जवा-आववानी शक्ति धर। वे छे तेवा साधु चारित्त- ११.२१.६ (चारित्र्य)- चारित्र,
संयम जइणो- ५.२९.१० (यतिनः)- यतिओ,
साघुओ जाइस्सरण- ११.५.९ (जाति-स्मरण)- पूर्व
जन्मनु स्मरण जिण-१.१.५ (जिन)- राग-द्वेषने जित्या
छे जेणे ते, जिन-तीर्थकर जिणवर- १.१४.५ - जिन-जैन तीर्थकर जिण-आगम- ११.१८.१,११.२०.५
(जिन-आगम)- जैन तीर्थकरे उपदेशेला _अने गणधरे गुंथेला आगम ग्रंथो जिणहर- ११.३९.१० (जिन-गृह)-जिना__ लय, जिन-मन्दिर जीव- ११.२०.३ (जीव)- चैतन्य, नव
तत्त्वोमां प्रथम तत्त- ११ १६.११,११.१७.२ (तत्व)परमार्थ. जैन दर्शनमां नव तत्त्वनी विचारणा करवामां आवी छे१. जीव २. अजीव. ३. पुण्य. ४. पाप. ५. आस्रव. ६. संवर. ७. बन्ध. ८. निर्जरा अने ९. मोक्ष. जगतमां बेज तत्वो छ-जीव (चेतन)अने अजीव (जड). एने विस्तारथी, मोक्षमार्गने लक्षमा राखी. समजाववा माटे ज बाकीना तत्वोनु जैन शास्त्रकारोए प्रतिपादन कयु छे.
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