Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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जात
बोहि- .११.३२ ५२ (बोधि)- सम्यक्त्व, संजम-११.२१.७ (संयम )-इन्द्रियो, मन सम्यगदर्शन
वगेरेने काबुमा राखीने पृथ्वी आदि र्ज वोर्नु भष- १.२.१०,११.१८.४ (भव्य)-मोक्ष- रक्षण करवु. . प्राप्ति माटे लायक जीव
संमुच्छिम- ११.५.४ (समुच्छिम)-माता भाव- ४.१:२.५ (भाव)- विशेष, वस्तु- पित ना संयोग विना उत्पन्न थयेल जीव. स्वभाव . .
स वर- ११.२०.३ (संवर)-कर्मना द्वारने मइ-११.२०.११ (मति)- मतिज्ञान, पांच बंध करवा ते. नव तत्त्वमानु छट्टुं तत्व. . इन्द्रिय अने मन द्वारा जे बोध थाय ते. सईबुद्ध-११.३२.१३ (स्वयंबुद्ध)-पोतानी मणपज्जव- ११.२०.११ (मनःपर्याय)- पांच जाते ज बुद्ध बनी सिद्ध थयेल. । ज्ञान-प्रकारोमा चोथु, अन्यना मनन प्रत्यक्ष सज्झाय-९.५.१० (स्वाध्याय % सु + आ कर ते. '
+ध्याय अथवा स्व +अध्याय) मासकप्प-११.३६.१ (मासकल्प)-शेषकाळ, शास्त्रोनु वारंवार वाचन, ज्ञान मेळवधू, -साधुए चोमासा सिवाय एक गाममां एक तेने निःशंक,विशद अने परिपक्व करवू अने मास उपरांत न रहेवु तेवो नियम.
स्वनु- आत्मानु चिंतन करवु ए सपळू मिछत्त-९:५.१२,११.१७.१० (मिथ्यात्व) स्वाध्यायमा आवी जाय छे.. विपरीत मान्यता, मिथ्या दृष्टि
समण- ८.२०.४ (श्रमण)-मुनि, निग्रंथ मूलायरणी-९.२३.४ (मूलाचार्या )-मुख्य समाहि- ११.३२.५२ (समाधि)-समाधि, आचार्या, गणिनी..
___ शान्तभाव मेहण-९.७.१० ( मैथुन )-विषय-सेवन सराविया- ११.२५.२ (श्राविका)- जैन मोक्ख-११.७.१०,११.२०.४ ( मोक्ष )- धर्मनु पालन करनार गृहस्थ स्त्री
मुक्ति, कर्म-बन्धथी ऐटले के भवभ्रमणथी सलिंग- ११.३२.११ (स्व-लिङ्ग)- जैन छूटकासे :
धर्ममां बतावेल साधुओनो वेश धारण वअ-४.५.१७,४.१३.१४ (व्रत ) हिंसा, करी सिद्ध-मुक्त थयेल आत्मा .
असत्य, चोरी,मैथुन, अने परिग्रहथी ( मन, सव्वण्णू - ११.२०.१ (सर्वज्ञ)-सर्व देश
वचन, कायावडे ) निवृत्त थq ते ब्रत. काळना ज्ञाता विरह-११.३.१३ (विरति )-व्रत
सामन्न- २.१९ १ (सामान्य)-सामान्य विरमण-११.३९.१६ (विरमण)-, सायर- ११.१८.२ (सागर)- सागरोपम, विवाअ.-१.२.९,२.१४.११,५.२१.७ संख्या-विशेष ..
*-(विशक)-कर्म- फळ, कर्म-परिणाम मावय-धम्म-११.२२.३ (श्रावक-धर्म)विसेस-२.१९.१ ( विशेष )-सामान्य नाही. गृहस्थनो धर्म. जन गृहस्थे पांच अणुवत, धीयराअ-११.१८.१०. ( वीतराग ) राग- त्रण गुणव्रत अन चार शिक्षाव्रत पाळवाना द्वेषथी रहित, जिन.
होय छे. गृहस्थाश्रमो जैन पुरुष अनुसया वेबड़िया १.१.११.१२ (वेद-त्रिक)-पुरुष- श्रावक कहेवाय छे. वेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद
साविया- ११.२३.१२ (श्राविका)- गृह
स्थाश्रमी जैन स्त्री श्राविका कहेवाय छे.
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