Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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*पच्छिया-३.२०.८,५.९.३-छाबडी (पच्छि- पिटिका-पटारी, दे० ना० ६.१) । /पटव- ( प्रस्थापय् ) मोकलयु, पाठवधु पठविय-१.२६.८ भू० कृ०
पदहाव है- ३.५.७ आज्ञा० द्वि० ए० व० पडवाअ-९.२८.७ (प्रतिवाद )-टेको पडिच्छंद -१०.१९.१० (प्रतिच्छन्द)प्रतिकृति। Vपडिच्छ-(प्रति + इष्) - ग्रहण क वृं।
पडिच्छसु-६.३ ३.९ आज्ञा ० द्वि० ए०व० पडिच्छि-१०.२२.६ आज्ञा ० द्वि०ए०व०
पडिच्छिउ -१.६.२ भू० कृ. पडिवत्ति - १. २७. ८ (प्रतिपत्ति) -
आदर, सत्कार पडिवन्न - २. ७. २ ( प्रतिपन्न ) -
स्वीकृत /पडिवाल - ( प्रति+पालय् ) - वाट जोवी
पडिवालि-९.३१.७ आज्ञा ० द्वि० ए० व. पणोल्लिय- ४. ९. ९ (प्रणोदित) - प्रेरेत पत्तयाल - ५. १८. १२, ६. २१. ३,
७. ९. ११ (प्राप्तकाल) - अवसरोचित पत्तल - ९. १२. ४ (पाताल) - पाताळ Vपत्तिअ-(प्रति + इ) - विश्वास करवो,
पतीज पडवी पत्तियइ - ५.१.९ वर्त० तृ० ए० व० पत्तियहि- २.९.४ वर्त० द्वि० ए. व. पन्हुइय - १०. १९. १० (प्रस्तुत ) -
झरेलु, पानो आवेलुं (पण्हओ - स्नन
धारा, दे० ना० ६.३) परट्ठय - ७. १५. १ (परार्थक) - V पराणी-(परा + णो )- पहोंचाडवं
पराणिऊण - २.१२.४ सं० भू० कृ. पराविय- ३.३.२ ( प्राप्त )-पहोंच्या परित्त -४.६.१५ (परीत)-परिमित परिमुसिय-५.२९ ३ (परिमृष्ट)-मर्दन कयु परियाअ-३.१२.८ (परिपाक -परिणाम (काल
--परियाई-आयुष्य पुरु थतां)
परिहणय-३.१०.२ (परिधानक )-वस्त्र, ___ पहेरण (परिहण-परिधानम्. दे० ना० ६.
२१) * परिहाविअ-१०.२१.१७ (परिधापित)-पहे.
राव्यु, पहेरामणी करी पलाणअ - ८. १५. १२ (पलायन) -
पलायन थयु पलायमाण - ७. २८. १ (परा + अय्
नुं व० कृ० )-पलायन थतुं पलित्त - १. ९, ११, १. १६. १
(प्रदीप्त )- ज्वलित ( तुल० गु० पलीतो) पलोदिटय - ८. १२. २ ( पर्यस्त) -
साम सामा पवाह - ५. १९. ११ (प्रवाह) -
परिवार पवाविअ - ११. ३७. ५ (प्रवाजित )
- दीक्षित पहल्लिय - ६. २४. । (पूर्णित) -
कंप्यु (प्रा० व्या० ४. ११७ ) *पहिरण - ८. २९. १० (परिधान ) -
पहेरण पहिल्लिया - ९. २२. ५ ( प्रथिल्ल )-पहेली पहुत्त १. ५. ३ (प्रभूत ) - पहोंच्यु
(भू प्राप्तौ-हे. धा०) पहेलिया-१०.२५.१२ (प्रहेलिका)- ऊखाणुं,
हिं. पहेली पाइक्क-२.११.७ ( पदाति )- पायदळ-सैनिक __ (प्रा० व्या० २. १३८) पाउल-१०.२१.२ (पादपूर)-पायल पाडिहेर-११.२४.११ (प्रातिहार्य)-देवी सहाय पाण-पियार- १.२.११ (प्राण+प्रियतर )
प्राणथी प्यार पाविय-पअ-४.८.११ (१) पाविय पउम(प्राप्त-पद्मा)-जेमांथी लक्ष्मीजी प्राप्त थया ते, सागर २. पावियपउ -(प्राप्तपद)जेमणे पद-सिद्धिनी प्राप्ति करी छे ते, मुनि
पारका माटे
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