Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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' * ढंढोलअ - ११.८.५ - ढोळवु
*ढंढोलिअ - ५.२४.५ ( गवेषित ) - ढढोळे ( प्रा० व्या० ४. १९८९ ) * ढुक्क - २.११.७ ( ढौकित ) - मळ्यु, भेट्युं, दुक्युं
*दुक्कअ-७.१६.२ - उपस्थित V * ढोअ - ढोवु, वहन कर ढोइअ - २.११.७ भू० कृ० ढोविय - ३.२१. भू० कृ० ढोइज्जहिं - ८.४.८कर्म० वर्त० तृ० ब० ढोएवि - ३.५ ११ सं० भू० कृ० * णुवण्ण- ३.१६.१० -सुतेलुं (दे० ना० ४. २५ )
तंति - ७.२८.१० ( तन्त्री ) - अतिरडानी तांत * तंति - ९.२२.११ - निन्दा
तइज्जअ - ६.७.११ ( तृतीय ) - त्रीजुं तट्ठिया - ६ १२१२ ( त्रस्ता ) - बीधेली ड- ७.२०१२ ( तत ) - ताणेल, बांधेल तण-४.५.६, २.१९.७, २.१८.१ - ( तनुं) - नुं (छडी विभक्तिनो अनुमर्ग, प्रा० व्या० ४. ४२२ )
*तत्ति - १.२. ३. वात तत्ति - ११.१६.६ ( तावत् ) - तेटलं V/ तप्प - ( तल्प ) - चिंता करवी
तप्पहि-६.१२.६ - आज्ञा० द्वि०ए० व० * तरिअ - ८.३७.१२ मलाइवाळु, तरियुं (दुध) तिंत ३.१३. ३ ( तं मित ) - भींजायेल भीनुं तिउण - २. १०.४ - ( त्रिकोण ) - त्रणे बाजुथी तिउस - २.१६९ ( त्रिदोष ) - वात-पित्तकफनो दोष, त्रिदोष
तिभाय - ६.२९.७ ( त्रिभाग - अतिभाग ) - त्रण भाग, घणो भाग
तुरंति - ४.२१.९ ( त्वरत् ) - तुरत थक्किया - २.७६ ( स्थिता) - ऊमेली, अट
केली
* थटूट १०.२१.४ - ठठ
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थड्ढ - ११.१९.२ ( स्तब्ध ) - स्तब्ध थयेल, थत्ति - ४.११. ३ ( स्थिति ) स्थिति V * थरहर - थरथर कांपवु ( थरहरिअं कम्पितम्, दे० ना० ५.२७ )
,
थरहरइ - २.७.५ वर्त० तृ० ए० व० *थाल - ८.२७.७ ( स्थाल ) - थाळ (दे०ना० ६.१२ )
* थोर - १.२३.४ ( स्थूल ) - स्थूळ, मोटुं (दे० ना० ५.३० )
दिन्नया - ९.१४.१२ दिनेल्लिया - ८.३६.८
(दत्ता) दीघेली
दट्ठव्वय - ३.१०.१२ ( द्रष्टव्यक ) -संभाळ राखवा योग्य ( 'दृश्' नु वि० कृ० ) दडिअ (?) ७.१५.१२ ( 1 ) ( दरिअ - दप्त,
प्रा० व्या० १.१४४ )
*दर - १.२३.१६ अर्द्ध, अडधुं (दे० ना० ५. ३३ )
दाण - १०.५.३ ( दान ) - दाण, लागो दिढ़ - १.१६.१ ( दृढ ) - दृढ दिव्व - २.१८.५ ( दिव्य ) - दिव्य, कसोटी दिसि - भोलअ - ११.८.५ (दिग्भ्रंश) - दिशा
भ्रम (भ्रंश भुल्ल, प्रा० व्या० ४.१७७ ) दिसिवाल - ६.२३.९ ( दिकूपाल) - दिक्पाल, दिशाओनुं रक्षण करनार देव दिसोदिसि - ६ . २९.१२ ( दिशोदिशि ) दशे दिशामां, बधी दिशामां दिसोदिसु - ७.४.५ ( दिशोदिशि ) - दशे दिशामां, बधी दिशामां
-
दुइज्ज
दुइय
दु
- निंद्य आचरण, पाप
दुव्वि - ९. ६. १४ ( जुगुप्सितव्य )
घृणा करवी, निंदा
५. ११.९ (द्वितीय) - बीजुं ४. १४. ३ ( द्वितीय ) - बीजु १०. ९.९ ( दुष्कृत + क )
-
निंदनीय (जुगुप्स्
करवी - नुं वि० कृ० ( प्रा० व्या० ४.४ ) V दुह - ( दुःखय्) - दुःख आपवुं दुभववुं दुहइ - २.१०.१३ वर्त० तृ० ए० व०
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