Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 285
________________ दुहिया - ४. २३. १५ (दुःखिता )- दुभायेली, दुखियारी दूस - ७. २०. ८ (दुष्य) - वस्त्र, देक्काण - १०. २. ९ (द्रेष्काण ) - द्रेकाण, ( ज्योतिषनो पारिभाषिक शब्द) *दोग्घट्ट - ८. १७. ३ - हाथी (दुग्घट्टो हस्ती, दे० ना० ५. ४४) धर - ८. ३३. ७ (द्रह-हृद) - धरो *धहावंतअ - ५. २०. १ - धा नांखतुं धाडो - ११. २४.२ (धाटो) - धाड *धाहा - ४. १८. ११ - धा, *धाहाविय - २.२२.८- धा नाखी, Vधुम्म-(ध्वन्यात्मक क्रिया )-'मद्दल' वाद्यनो अवाज धुम्मइ-७.२१.३ वर्त० तृ० ए० ० धुरगय - ६. ६. ७ (धुरागत) - धूंस रीए जोडेल *नंगर - ३. १. ४ - वहाणन लंगर नवि - ४ २. २ (निषेधार्थक अव्यय) नव, नहीं नाहिं - २. १. ४, ९. २२. १२ (नहि) -नहीं, (प्रा० व्या० ४.४१९) निउंछण - १०. ४. १२ (न्युञ्छन -) - दुःखणा लेवा निक्खत्तु - ९. २४. १० (निःक्षत्र) - नक्खोद ? निक्खुट्ट - ७. २७. २ (नि + खुट्ट) - खूटी गयु, (-खुट्ट %D तुइ, प्रा० व्या० ४. ११६) *निच्चोल - ५. १५. ९-जाडु, म टुं निच्छुलिय - ५.२७. ८ (निः + छुडित ) -- पहोळी थई (छुड् = पाथरवू, पहोळु करवं, है० धा०) निच्छोडिय - ५. २९. १ (निश्छुटित ) छोड्यु *निज्जूह - ५.१३. ९ (नियूह) -बार| नित्थाम-८.५.५ (निःस्थामन् ) निर्बळ Vनित्थर- (नि+तृ)-पार कर नित्थरेइ-१.२.८ वर्त० तृ० ए० व० निद्धाहिअ-१०.१५.१२ (निर्धावित)-परवारेल निन्नास-५.७.२ (निर्णाश) विनाश निम्महिय-६.२५.४ ( गत-प्रसरित)- फे____लायेल (निम्मह-गम्, प्रा०व्या ० ४.१६२) *निरह-११.८.१०-नयु निरु-८.१४ ११ नयु (प्रा०व्या ०४.३४४) Vनिसाम- (नि+शमय्) -सांभळवू निसामेवि-३.८.१ सं० भू० कृ० (णिसामिअं-श्रुतम् दे० ना० ४. २७) /निसुण-(नि+श्रु) -सांभळवू निसुणि-९.२ ८ आज्ञा द्वि० ए० व० निसुणेविणु-१.१७ १२ सं० भू० कृ० निसुणेहु-१.२.१२ आज्ञा ० द्वि० ब० व० (णसुअं - श्रुतम्, दे० ना० ४. २७) निहिदठ-१.३.६ (निवृष्ट )- घसायेल नीसरियअ-१.४.१२ (निःसृतक) नीकळ्यो, नीसों नीसरिया- ४.११.१२ (निःसृता) नीकळी नुवन्निया-९.२६.३-सुतेली (दे० ना० ४. २५) पंगुर- (प्र+आ+ )-ढांकg पंगुरंति-८.३०.३ वर्त० तृ० ब० व० (पङ्गुरणं-पावरणं, प्रा० व्या० १. १७५) पंचवास-१.२४.१३ ( पञ्चवास )-पांच प्रकारना सुगंधि द्रव्यो नाखेलु (पान) पंचहाअ-९ २३.५ (पञ्च भाव)-पंचत्व, मृत्यु पच्चल्लिय-७ ८ ३ (प्रत्युत)-विपरीत, ऊलटुं पच्छइ-६.३१.१६ (पश्चात् )-पछी । पच्छइ-४.१८.५ (पश्चात् -पाछळ (प्रा० व्या० ४. ४२० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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