Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१९२
साहारणकइविरइया
[११.३५
जं विणु न चलिज्जइ सो अणुणिज्जइ जइ अवराह-सयई करइ । हुयवहु पज्जलियउ पुरु अइ बलियउ दहइ तो वि को न घरे धरइ ॥३४॥
अन्ना पुण भणइ म भणह एउ इह लोइ ताव किउ रज्जु सारु देवीउ इमेण वि सरिसियाउ
धन्नाउ करिस्सहिं तवु विसालु ५ इय नायरियाहिं भणिज्जमाणु
नयराउ विणिग्गउ गरुय-तेउ सव्वालंकार परिचएवि आगम-विहीए जहक्कमेण
अणुसहि जहट्ठिय विहिय ताहं १० देवी-पमुहाउ वि राणियाउ
संसार-विरत्तउ अम्ह देउ । एवर्हि पुणु इच्छइ भवह पारु । वच्चंति पेच्छ सहि हरिसियाउ । तुम्हे पुणु झंखहु आलुमाल । गयणट्ठिय-सुर-पूइज्जमाणु । गुरु-पासि पहुत्तउ सिग्घ-वेउ । वय-गहण-सज्जु ठिउ गुरु नमेवि । मुणि-दिक्ख दिन्न चित्तंगरण । नरवइ-खयराहिव-मुणिवराह । संजम-सिरीए हुय संमाणियाउ ।
सिक्खा सिक्खाविय विहि लक्खाविय वक्खाणियई महव्वयई । किय दिवस वहावण पुण उट्ठावण सुत्तई तेहि अहिज्जियई ॥३५॥
तो मास-कप्पु तावहिं समत्त विहरिउ कमेण गुरु निम्ममत्तु । पढमाणु दुवालस-अंगु सारु विहरइ राय-रिसि सणंकुमारु । जसवम्मु साहु एगारसंगु पढिउ तवु कुणइ अणेय-मंगु । वसुभूइ-साहु-विणयंधरेहि किंचूण दुवालस पढिय तेहिं । ५ अन्ने वि मणोरह-पमुह साहु जह-सत्तिए पावहि सुयह लाह ।
ताउ वि विलासवइ-अज्जियाउ एगारस-अंग अहिज्जियाउ । सव्वे वि सुदुक्करु तवु कुणंति सव्वे वि पवरु आगमु गुणति । कालकमेण मुणि खयर-राउ सो गहिय-सयल-सुत्नत्थु जाउ ।
चित्तंगएण तो निय-पयम्मि ठावियउ मूरि रहनेउम्मि । १० तहि अजियबलेण महा-पमोउ कारिउ आणदिउ सयल लोउ । [३५] ५ पु० नायरियाहं ७. पु०-सज्ज [३६] १. ला०-कप्पु जावहि ५. ला० पावेहिं
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