Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
V*खस-खस
खसंति ११.३२.३२ वर्त० तृ० ब०व० खसिय ३८६ भू० कृ० खाण-पाणय
९८.१२ ( खादन- पानक) -
खानपान
खिज्जिअ ४.१०.९ ( खिन्न ) - खिन्न खित्त ७.१४. ३ (क्षिप्त ) - मोकलेल V*खुट्ट (तुड्) - खुटवं, (दे० ना० २.७५, प्रा० व्या० ४.११६)
खुट्टए ९.८.११९ वर्त० तृ० ए० व० खुट्टउ ८.५.१० भू० कृ० *खुडुहुडिय ८.३५.६-भेळवेलुं (१) * खुत्त ११.३२५२ - खुतेल, निमग्न (दे० ना० २.७४) * खुरहुर ७.१५१२ डंफास मारवी, बडाई मारवी (?) V*खुसफुस - घुसपुस करवी
खुसफुसहि - ९.२३.१ वर्त० तृ० ब०व० खोह ३.७.१२ - ( क्षोभ ) - खळभळाट गंडवास ३.८.४ ( गण्ड - पार्श्व) गालनो
एक भाग गग्गय-गिर ६.१६.९ ( गद्गद् - गिर) --गद्गद् कंठे, गळगळा थईने.
गड्ड ११.८.२ - (गर्ल्स) - खाडो, हिं. गड्ढा *गड्ड २.११.१ गाडुं (दे० ना० २.८१गड्डी)
गब्भय ७.२०.४ ( गर्भ क ) - गर्भ गृह, घरनो अंदरनो भाग
गम ५.१९.१४ (गम ) - मार्ग, रस्तो गयत्रइय १.६.१२ ( १ . गजपतिक) हाथी -
आनो राजा (२. गतिका) प्राषितभर्तृका गरुयअ ४.८.१२ - ( गुर+क+क) महान गल ५२१.६ (गल ) - गल, माछली पकड़वानो कांटो
गहगहियअ १.१२.१२ ( ग्रह - गृहीत+क ) - भूत-प्रेतादिथी आक्रान्त
Jain Education International
हवइरिय ( १ ) ६.५.१२. - ( सन्दर्भ परथी ) गृहस्थ अने तेनी स्त्री ?
गामिय ४.३.६ - ( कामित ? ) इच्छित * गिरिव ८.३५.९ - गर्भवाळु ( फळ ), अंदर मावावाळु ( फळ )?
* गुडिया ८. २४.४ - पुतळी, हिं० गुडिया V*गुमुगुम (गुमगुमाय् ) - ( ध्व० क्रि० ) गुम गुम अवाज करवो, गुमुगुमंत १.७.५ - वर्त०तृ० ब० व० √/* गुलुगुल - ( गुलगुलायू ) (ध्व०क्रि० ) गुल गुल अवाज करवो गुलुगुलंत ८.२५.८ वर्त० कृ० गुलगुलिङ ६.२४ ४ भू० कृ० * गुविल ११.१२.१ ( गुपिल ) - गुंचवा - येल ( गुमिल गहनम्, दे० ना० २.१०२) * गुवुड ९.३१.७ ( गड्डु ? ) - गुमडु ? *गोस ११३३.३ प्रभात (दे०
-
ना० २०.९२ )
गोसामिय (१) ७.२९.२ - ( गोस्वामिज ? ) - छाण (?)
घग्घर वयण ४.१९.१ ( घर्घर वचन ) - खोखरो अवाज, गद्गद् अवाज घल्लिय ३.१.६,४.१५.९,६.४.१०, ७.२.२ घाल्युं, घटित
घल्लियअ ७.२.२ - (क्षिप्त ) - फेंक्युं घुण - अक्खर - नाय - १.२४.४ ( घुणाक्षरन्याय ) अनायास कार्य-सिद्धि घुम्मिय ८.२२.३
( घूर्णित ) - घुमी - फरी गयेल ( घुम्म-घूमकुं प्रा० व्या० ४.११७ )
* घुरुहुरिय ३७.७ - ( घुरुघुरायित ) • घुरक्यां ( कुतरां )
* घुसिण ११.१५.१ ( घुसृण ) - सुगन्धित द्रव्य - विशेष, केशर V घे ( ग्रह् ) - पकडवु घेतून - ६.२६.८ सं० भू० कृ०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310