Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 280
________________ का इ- ८.२९.७ (का अपि का चित् ) कोई कांइ २. ८. १७, २. ९. ३ (किम् ) शुं, कई ७. १२. ४ ( कथम् ) शा माटे * काणि - २. १०.७ काण, महोकाण ( तुल० कण् शब्दे - है. धा.) काम थड्ढो ११. १९. २ ( काम स्तब्ध ) विषय-व्याकुळ ( प्रा. व्या. २. ३९ ) किकिरिक किकिरिकि - ७ २१. ३ ( ध्वनि विशेष ) 'करडी' नामना वाद्यनो अवाज किच्च ११. ३३. ३ ( कृत्य) कृत्य, कार्य किमि २. १७.६, ( कथम्) केम किमेड ४. ५. २ ( किमेतत् ) ए शुं V किलकिल - ( किलकिलायू ) - (कलकिल अवाज करवो- (किलकिलाट ) किलिकिलंत ३.७.६ - वर्त० कृ० किलिकिलिउ ६.२७.१२-भू० कृ० किहविह - ८.९६७ - ( कथंविध ) - केवी रीते कुंड कुंडय ९.२२. २ ( कुण्डक कुण्डक) - कुंडाळे - टोळे वळीने ? कुंडलिकरण - ६.१०.२ ( कुण्डलि - करण ) - कुंडा छानो आकार धारण करवो, गुंचळु वळवं कुंडलिय - ६.२५.३ - ( कुण्डलित ) - गोळाकार कुंभिपाअ - ११.४.४ ( कुम्भीपाक ) - नरकनी येक प्रकारनी यातना कुग्गह - ११.१८.१०. ० - (कु-ग्रह) - कदाग्रह कुम्मुन्नअ - १.२३.२ (कुर्मोन्नत= कूर्म + उन्नत ) - काचवा जेवा ऊँचा कुरुलिय - ८.७.१० ( कुरुलित ) - 'कुरल कुरल'वो अवाज कर्यो ( सारसे) * कुल फंसण २.१३.९ - ( कुल - पांसन) - कुळने हलकुं पाडनार (दे० ना० २.४२ - कुलफंसणो कुलकलङ्कः) कुल विइ १०.९.३ ( कुलवृत्ति) - कुळ- मर्यादा √ कुव्व - (कु-कुर्व् ) - करवुं V कुव्वंति - ३ १६.४ वर्त० तृ० ब० व० *कुसुमाल १.११.६ चोर (दे० ०ना० २.१० ) Jain Education International कूविया ३.१८.४ - ( कूपिका ) - कूं पी केंत्र ८.१६.८ - ( कथम् ) - केम, देवी रीते केर ३.२.७ - ( सत्क ) - केरुं, नुं ( सम्बन्ध - विभक्तिनो अनुसर्ग, प्रा० व्या ०१.१४७ ) केवड्ड २.३४ - ( कियत् ) - केवडुं केस-कड्ढण ७.२६.८ - (केश-कर्षण) वाळ खचवानी लडाई, केशाकेशी केसर १.६.११ - ( केसर) १. केसर- पुष्प ( उद्यान साथै ) २. केशवाळी ( सिंह साथे ) केसराल ६.२८.४ ( केसरिन् ) - केसरि सिंह केहउं २.१५.२ - ( कीदृश) केवुं कोउय ७.२०.१४ - (कौतुक ) - मंगळ-विधि, सौभाग्य माटे करवामां आवती होम आदि क्रियाओ *कोड्ड ३.६.१०, ६.१.१३ १. आश्वर्य, कौतुक, कुतूहल २. कोड, आशा, होंश (दे० ना० २. ३३) V*खंच - खेंचं, वश कर खंचहु११.३९.१६- आज्ञा ० द्वि०ब०व० खंडअ ७.१४.१३ (खण्डक) खंडियो, ताबेदार खंड - आसुरिय ८.३६.१ (खण्ड- आपुरिय) - खांड पूरे, खांडी भरेलुं खंध ६.२७.७. ~ ( स्कन्ध ) - खभो, कांध खंधार - खंधावार ८.१०.४ - ( स्कन्धावार) - सैन्य-शिबिर, छावणी खंभ १.१६.२ - (स्तम्भ) - खभी खग्ग-गाम ९.१६.६ ( खड्गगाम ) तलवारनी जेम ऊभी गति करनारो V * खडड (ध्वनि-क्रिया) - 'खडड' शब्द करवो खडहडंति७.७.७–व० कृ० *खद्धिइया ५.२५.६- - खवायेली, (खद्धं = भुक्तम्, दे० ना० २.६७) खलिय ४.१४.१२ (स्खलित ) - स्खलन, भूल *खत्रखवंत ८.२५.८ ( ध्वनिशब्द ) खवखव करतां, थनगनतां (घोडा) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310