Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 270
________________ १९३ ११.३८] विलासवईकहा गुरु-आणावत्तिणि सा वि पवत्तिणि ठाविय गणिणि विलासवइ । अहवा कय-पुण्णहं गुण-संपुण्णहं जहि तहिं उत्तमु पउ हवड़ ॥३६॥ अह उग्ग-तवेण य विहरमाणु संपन्नु सूरि सो दिव्व-नाणु । मइ-सुयइं ओहि-मणपज्जवाइं जाणंति अईय-अणागयाइं । चारण-मुणीण संघेण जुत्तु कार्यदिहिं नयरिहिं सो पहुत्तु । पंचम-भवे समराइच्च-जीवु जयकुमारु विबोहिउ कुल-पईवु । ५ पुणु तामलित्ति-नयरिहिं नरिंदु पव्वाविउ सिरि-ईसाणचंदु । सिंगारवई-पमुहउ राणियाउ पवइय पत्तिणि पासि ताउ । सा पुण अणंगवइ नाम देवि गय देव-लोइ अणसणु करेवि । तो भव्य-कमल पडिवोहिऊण नाणा-देसेसु य विहरिऊण । जाणेविणु अप्पणु थोव आउ सोरट्ठ-देसि विहरंतु आउ । १० अह सा वि सयल-साहुणि-सहाय विहरंत पत्तिणि तत्थ आय । सुर-मिहुण-मणोहरु गिरिवर सेहरु धरिय-विविह-वण-गहण-सिरि । सुपवित्त-सिलायलु रुद्ध-धरायलु दिट्ट विसिटर विमलगिरि ॥३७॥ जहिं भरहेसर-नरवइ-नंदणु रिसह-नाह-गणहरु भव-मद्दणु । पढममेव पुंडरिउ पसिद्धउ समण-सहस्सेहिं सरिसउ सिद्धउ । जहिं नमि-विनमि-पमुह विजाहर दोलि कोडि सिद्धिय मुणि-सेहर । भरह-सगर-वंसम्मि य राय कालक्कमेण विणिज्जिय-रायहं । ५ जस्स सिहरि उत्तुंगि पहाणइ सिद्ध अणेय कोडि को जाणइ । हरिवंसम्मि य जायव-सारह जत्थ कोडि आहट कुमारह । बारवइ-विणासि निविण्णहं सरिसिय सिद्ध संव-पज्जुण्णहं । पंडव-वीर भुवणे सुपसिद्ध जहिं दोवइ-कुंतिहि सहुँ सिद्ध । [३६] ११. ला० पवित्तिणि १२.ला. अह ता कयउन्नह गुणसंपुन्नह [३७] १. ला संपुण्ण सरि ४. पु०पंचमे-भवे ७. पु०देव-लोय ११. ला०गिरिवर-सिहरु [३८] ४. पु० उसह-सगर- ६. ला० तत्थ कोडि २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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