Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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कवि - प्रशस्ति
वाणिज्ज-मूल-कुले कोडिय - गणे विउल - वर - साहाए । विमलम्मिय चंद-कुले सम्मि य कव्व-कलाण संताणे ॥१॥ राय - सहा- सेहर - सिरि-बप्पहट्टिसूरिस्स | जसरि - गच्छे महुरा - देसे सिरोहाए || २ ||
आसि सिरि-संतिरि तस्स पर आसि सूरि- जसदेवो । सिरि-सिद्धसेरो तस्स वि सीसो जडमई सो ॥३॥ साहारणो ति नामं सुपसिद्धो अस्थि पुव्व-नामेणं । थुइ थोत्ता बहु-भेया जस्स पढिज्जंति देसेसु ॥ ४॥ सिरि- भिल्लमाल- कुल-गयण चंद गोवइरि - सिहर-निलयस्स । वयणेण साहू लच्छीहरस्स रइया कहा तेण ||५॥ समराइच्च-कहाओ उद्धरिया सुद्ध-संधि-बंधेण । कोऊहले एसा पसन्न -वया विलासवई || ६ || एक्कारसहिं सएहिं गएहिं तेवीस वरिस अहिएहि । पोस- चउद्दसि सोमे सिद्धा धंधुक्कयपुरम्मि ॥७॥ एसा य गणिज्जंती पारणाऽणुभेण छंदेण । संपूण्णाई जाया छत्तीस सयाई वीसाई ||८|| जं चरियाओ अहियं किं पि इह कप्पियं मए रइयं । पडिवोह - कारणेणं खमियन्वं मज्झ सुयणेहिं ॥ ९ ॥ जय तियसिंद-सुंदरि-वंदिय-पय-पंकया कयारूढा । बुडयण - विदिष्ण-वाणी सरस्सई सयल- सुह- खाणी ॥१०॥
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