Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१०.२५ ]
विलासबईकहा
१६९
पभणइ विलासवइ उदिसेवि जाणहि पण्होत्तरु एक्कु देवि । सा भणइ भणिज्जउ अज्जउत्त हउं हूइय एह दिढोवउत्त । के देवि महारणे विप्फुरंति के तरुणि-चरण-मंडणु करंति ।
के रयणिहिं पावहिं पिय-विओउ को न मुणइ सुह-असुहप्पओउ । ५ किं सुरपुर-सन्निहु सव्व-कालु ? जाणसु त्ति देवीए भणियं
जाणिउ रहनेउरचक्कवालु ॥ पुणो भणियं -... के घर हवंति नउलाइयाई का कुणइ समासासणु जियाहं ।
का फलिय-खेत्त-रक्खणु करेइ का महिल कंत-मणु अवहरेइ ॥ १० चंदलेहाए भणियं-विलासबई ॥
देवीए भणियं--- अलमेएहिं पिय पण्होत्तरेहि तुहुँ एक पहेलिय महुं सुणेहि । विज्जाहरि-रूय समाण-कंति आयासह लग्गइ पज्जलंति ।
संपुण्ण चंदमुहि गोर-देह तुहुं वीर कहहि तिय कवण एह ॥ १५ पुणो पढाविऊण जाणिया - तुं वी (चंद्रलेखा) ॥
देवीए पढियं-- क वि दिट्ठ बाल अंबरे भर्मति सुकुमाल न मेल्लइ रिक्खपंति । सा असइ देव पिय-रत्तिया वि नहार न होइ कहि जुबइ का वि ? ॥
जाणिया - जया एसा ।। २० चंदलेहाए पढियं -
खामोरि कंतय-गुण-सुबद्ध अणुरत्त-सुहय सुनयण विअद्ध । ससिणेहिय मग्गेवि लइ विवाहि पाणप्पिय न महिलिय अन्न वा हि ।
पुणो पढाविऊण तेण जाणिया-पाणहिया चंद लेहा । [२५] १. ला० पण्होत्तर एक ३. ला०-मंडणु कुणंति । ९. ला० फलिह खेत्त १३. ला०
विज्जाहरि-राय १४. पु० गोरदेहि २१. पु. कन्नय-गुण
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