Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 244
________________ १०.२३ ] १५ पावेवि असेसई मंगलई नरनाहें भवणि पवेसियउ विलासat कहा मोतिय-किय-चक्क विणिवेसिवि परिहाविउ सपरियरो | चंदन-दहिय-दुख आरत्तिय किउ लवणाइ वित्थरो ॥ २१ ॥ [२२] मज्जण - देवच्चण-- भोयणाई संभासिय सयल विबंधु - मित्त दीणाइहिं दिन्न महंत दाण सम्माणिय सयल वि सुहड वग्ग ५ एवं च कइ वि सुह-संगयाई अन्नहि दिणि नरवर भणइ एउ सो भणइ ताय महुं नाहिं कज्जु पर मई जड़ पट्टावेहि सामि सुन्न रहनेउरचक्कवालु १० कित्तिम भणइ नरवइ ससोउ एत्तिय कालह अहहं मिलिउ तुह दंसण आसई जीवियई आवासेहि पेसेविणु बलई । सीहास पवरे निवेसियउ । Jain Education International कारवियई वर- वद्धावणाई | अवरोपरु पुच्छिय कुसल-वत्त । परिओ विहिउ पणईयणाण | आणंदिय जणवय-पय समग्ग । तत्थेव ताहं दिवस गयाई । पुत्तय पडिच्छि रज्जाभिसेउ । तुह पाय पसाएं लडु रज्जु । तो हउं निय-नयरह ताय जामि । तो न खमइ मुक्कउ बहुय - कालु । किह पुत्त सहेस्सहं तु विओउ । एवहिं तुहुं निय-नयरह चलिउ । far अम्हे पुणो वि तई रहियई । किंचि वि तुज्झ कज्जयं । पेच्छहु तुज्झ रज्जयं ॥ २२ ॥ ता जीवंतएहि जइ अम्हेहिं ता तत्थेव हि अप्पणि सहुं [२३] खयराहि भइ महा-पसाउ तु पाय कमल सेवंतयस्स एक्कउं उम्महिय सई मणेणं ता किं न पट्ट सिग्घ ताउ । महुं सफल जम्मु सामिय अवस्स । atri पुणु लविय वरहिणेणं । इय मुणिवि नराहि तुट्टु चित्ति सुन्न न रज्जु एउ मुच्चइति । [२१] १६. ला० नरनाहिं १७ पु० - चउक्के १८. ला०दोव्व- आरत्तिय [२२] २ ला० संभालिय ९ ला० सुन्नं रह० [२३] ३. पु० एक्कं १६७ सयले ३. पु० परिउसु ४ ला सयले ८. ला० पठावेह १२ पु० दंसण आसए... किय अम्हे सयं मुणेण बीयं पुणु.... ४. ला० सुणवि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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