Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 256
________________ १७९ ११.१५] विलासवईकहा धण-कणय-समिद्धउं पुहइ-पसिद्धउं भाईरहि-नइ-तडि वसिउ । धरणिहि अवइण्णहं लणहं सउण्णहं सग-खंडु नावइ खसिउ ॥ १३ ॥ [१४] पय-पालणु पत्थिव-गुणेहिं जुत्तु तहिं आसि नरा हिवु चंदउत्तु । कुवलयसिरि राणिय आसि तस्स हिय-इट्ठिय सिरि जिह महमहस्स । सोंडीरवाय सोहग्ग-जुत्तु ताण य कुमारु तुहु रामगुत्तु । एसा पुण गज्जणयाहिवस्स सिरि-तारावीढ-नराहिवस्स । ५ जोव्वण-विलास-लायण्ण-रासि हारप्पह नामेण ध्य आसि । सा तेण दिन्न तुह साणुरूय घण-पेम्म-परायण घरिणि हूय । एईए सरिसु तुहं सुहु विसालु मुंजतु न जाणहि गयउ कालु । अह विविह-वियारेहिं उल्लसंतु संपत्तु जणह मणहरु वसंतु । तो तुम्हि महंते चडयरेण ___ कीला-निमित्तु सहुं पुर-जणेण । १० नाणा-उवगरणेहिं संगयाइं रमणीय-तीरे गंगहे गयाई । हल्लंत-तरंगेहि हंस-हंगेहिं तहिं रमणीय-लया-हरइ । दोन्नि वि सविलासई वड्डिय-हासई ठियई तुम्हे जिह मयण-रइ ॥१४॥ [१५] मयणाहि-गंधु ससहरु बहक्कु नव-घुसिण-विलेवणु तुम्ह हुक्कु । अवरोप्पर-हास-परायणाई मुह-कमल-निवेसिय-लोयणाई। जा तत्थ तुम्हे सयमेव तेण उबट्टह अंगु विलेवणेण । ता हंसहं मिहुणु मणाहिरामु तहिं पत्तु लया-हरि धवल-धामु । ५ तो गरुय हास-वियसिय-मुहाए तुहुं भणिउ एउ हारप्पहाए । पिय हंस-जुयलु गिण्हह खणेणं एउ जेण विलिंपह कुंकुमेणं । तो धरिय हंसि तइं कोउगेणं देवीए हंसु पुणु करयलेणं । दोण्णि वि किय घुसिण-विलित्त अंग जाणंति परोप्पर जिह रहंग। खणमेत्तु धरेविणु मेल्लियाई नियडे वि न परियाणंति ताई। १० तो गरुय-विरह-वेयण-वसेणं कूवंति दो वि करुणई सरेणं । [१४] ४. ला० एसा उण ६. ला० घरणि ७. ला० एई य सरिसु, पु० न याणहि ९. पु० तुम्हें महंते [१५) १. पु० तुम्हे ढुक्कु ६. पु. गेण्हहं ७. पु० तं कोउगेणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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