Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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९. २४)
विलासवईकहा
९४७
पुणु आसुपासु जोयंतएहि खुसुफुसहि भणिज्जइ वाणिएहि । भो तुम्हेहिं जाणिय का वि वत्त जा अज्ज-कल्लि राउलहं वित्त । पुणु क सिय वण्ण कक्का कहेहि सो जंपइ अरे भाइय सुणेहि । किल मूलायरणिहि भासिएण तिं दोसि मूलायरियएण । ५ पुत्तलउ सो जि सुत्ते सहाउ उत्तारिय किल तमु पंचभाउ । तो अग्गि पडिय किं एउ होइ पर जुत्ताजुत्तु न मुणइ कोइ । किं बोल्लहं जइ बोल्लणहं जाइ पर अवर भत्ति राउलह काइ । ता विरुयउं हुयउं एउ साहु बलिकिउ एहु पट्टण-तणउ लाहु ।
सुंदरु वि बलिक्किउ तं सुवण्णु जं परिहिउ तोडइ सो जि कण्णु । १० सो वीस-विसो इउ पुरिसु आसि किं अग्घइ छम्मासिय निवासि ।
जहिं विचारु कोइ वि न किज्जए तेत्थु नयरि किं ववसिज्जए । इय सदुक्खु बोल्लंति वाणिया जेहिं देव गुण तुम्ह जाणिया ॥२३॥
[२४]
अह तुह पहु दुक्ख-करालियाउ बोल्लंति य नयर महेलियाउ । हा विरुयउं हल सहि एउ हूउ मारिउ कुमारु जं दिव्व-रूउ । हा सुहउ सलोणउ ख्ववंतु को दीसइ नयरि परिभमंतु ।
चंदेण व गयणु सुसोमएण एह आसि अलंकिय नयरि तेण। ५ सो आसि अचंचल मिउ सलज्जु किह बहिणि करेसइ एउ कज्जु ।
महिलिय-वयणेहिं अयाणएण विरुयउं ववहरियउं राणएण । क वि भणइ म रायह दोसु देहु दुच्चरिउ अणंगवईए एहु । सा चेव य सयल-अणत्थ-मूलु हउं बहिणि वियाणउं तीए सीलु।
जं सीसि चडाविय राणएण तें गव्विं न गणइ कि पि तेण । १. गरुयइ पइटाविय अइ-पयंड निक्खत्तु नइस्सइ सयल रंड । [२३] २. ला० वत्ता . राउलह चिंता । पु० राउलेहिं वित्त । ३. ला० सो जपए ४. पु०
मलायरिणिहि ५ ला० पंचहाउ ६. पु० सुणइ कोइ । ७. पु. पर पर भवर ८. ला० बलकिउ, पु० इइ ९. ला० बलविकउ....जं परहिउ, पु० जि कण्णु । १०. पु० पुरिसो
११. ला० ववसिज्जइ १२. ला० सक्ख [२४] ३. पु. सलूग र ५. प० इह आसि ८. ला० बहिणे ९. पु० तिं गवि
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